सावन में है शिव की उपासना का विशेष महत्व, होते हैं ये लाभ
Published: Jul 16, 2017 01:32:00 pm
एक श्लोक के अनुसार ‘वेद: शिव:, शिव: वेद:’ अर्थात वेद ही शिव है और शिव ही वेद है
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– डॉ. राजेश कुमार व्यास
नमामिशमीशान निर्वाणरूपम् विभु व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्
एक श्लोक के अनुसार ‘वेद: शिव:, शिव: वेद:’ अर्थात वेद ही शिव है और शिव ही वेद है। चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ हमारे नव वर्ष का पांचवा महीना है श्रावण। पावस ऋतु। ऋग्वेद का एक श्लोक है, जिसमें आया है, ‘वाचंपर्जन्यानिन्वितां-प्रमण्डूकाअवादिषु।।’ अर्थात वर्ष पर्यन्त जो जीव मौन व्रत धारण किए होते हैं, इस ऋतु में बोलना प्रारंभ कर देते हैं। …तो कहें, मौन व्रत के बाद जीवों के नाद से साक्षात् का माह है श्रावण। जो नास्तिक हैं उनके मन में भी यह श्रावण आस्था का वास कराता है। भगवान शिव का प्रिय जो है यह मास!
साधना की सबसे बड़ी बाधा चंद्रमा है। इसी से चित्त अस्थिर रहता है। शिव ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया हुआ है। इसलिए जो शिव का पूजन करे, उसकी साधना पूर्ण हो जाए। जिसने शिव को साध लिया, समझिए मन को भी उसी ने साधा है।
जन्म-मरण क्रियाओं से मुक्त करते हैं शिव
वैदिक परम्परा में उद्घोष भी है, ‘श्रावणे पूजयेत शिवम्’। त्रिगुण स्वामी हैं शिव। सत, रज और तम गुण भाव को जो प्राप्त करता है, वही है त्रिगुणातीत। जन्म-मरण से अपने भक्तों को मुक्त ही तो करते हैं शिव। इसीलिए श्रावण में शिव पूजन का अर्थ है, मन को साधना। यह मन ही मोक्ष और बंधन का सबसे बड़ा कारक है। कहते हैं, साधना की सबसे बड़ी बाधा चन्द्रमा है। इसी से चित्त अस्थिर रहता है। पर शिव ने अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण किया हुआ है। इसलिए जो शिव का पूजन करे, उसकी साधना पूर्ण हो जाए। जिसने शिव को साध लिया, समझिए मन को भी उसी ने साधा है।
भस्म रमाने वाले मनमौजी शिव
स्वामी श्रीरामसुखदासजी शिव के भस्म लेपन पर कथा सुनाया करते थे। कहते हैं कि एक बार शिव कहीं जा रहे थे। देखा कुछ लोग एक शव को ‘राम नाम सत है’ का नाद करते हुए श्मशान ले जा रहे थे। शिव को लगा, इस शव में राम का वास है। वे भी साथ हो लिए। श्मशान पहुंचे तो देखा, लोगों ने शव दाह किया। शिव ने सोचा, इसमें ही राम बसे हुए हैं सो उन्होंने जले हुए शव की भस्म का लेपन कर लिया। तभी से शिव भस्म रमाने वाले हो गए।
भगवान श्रीराम भी करते थे शिव का अभिषेक
श्रावण से कई कथाएं जुड़ी हैं। कहते हैं, महादेव को श्रावण माह इसलिए प्रिय है कि देवी सती ने दक्ष के यज्ञ में जब योग शक्ति से शरीर त्यागा तो उससे पहले हर जन्म में शिव को ही पाने का प्रण किया था। दूसरे जन्म में वे हिमाचल की पुत्री रूप में जन्मी। युवावस्था में हिमाचल-मैना की बेटी पार्वती ने इसी श्रावण माह में निराहार रहते कठोर तप किया। शिव प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। बस तभी से यह समय शिव को सदा के लिए प्रिय हो गया।
दूसरी कथा शिव के विषपान से जुड़ी है। कहते हैं इसी माह में समुद्र मंथन हुआ। मंथन से 14 प्रकार के तत्त्व निकले। बाकी सभी तत्त्व तो देवताओं और राक्षसों ने ग्रहण कर लिए पर हलाहल विष का पान कौन करे? सृष्टि की रक्षा के लिए शिव सारा विष पी गए। उन्होंने इसे कंठ में धारण किया। जहर के संताप से बचाने उन्हें गंगा जल अर्पित किया गया। बस तभी से श्रावण में शिव के विशेष जलाभिषेक की परम्परा भी जुड़ गई। शिव का जलाभिषेक करने के लिए हरिद्वार, काशी और कई जगह से गंगाजल ला कावड़ यात्रा करते हैं श्रद्धालु। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने भी सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया।
सृजन, पालन और संहारक भी शिव
श्रवण में ही मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लम्बी आयु पाने के लिए घोर तप किया। काल के काल महाकाल प्रसन्न हुए और मार्कण्डेय ने मृत्यु को पराजित किया। श्रवण में कथा यह भी आती है कि श्रावण में शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से हुआ। इसलिए श्रावण में शिव के जलाभिषेक का खास महत्त्व है। बिल्वाष्टकम में शिव पर चढ़ाए जाने वाले बेल पत्रों का रोचक वर्णन है। तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती है माने शिव के तीन रूपों का ही उनमें वास है- सृजन, पालन और संहार। शिव सब हैं।
महाकाल को यूं करें प्रसन्न
आइए, शिव के प्रिय मास श्रावण में हम भी शिव की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करें। काल के भी काल-महाकाल। निपट भोले-भोलेनाथ। रुद्रह्योपनिषद् में शिव के बारे में कहा गया है कि सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। इसीलिए कहा गया है, ‘रुतम्-दु:खम्,द्रावयति-नाषयतीतिरुद्र:।’ यानी भगवान शिव सभी दुखों को नष्ट कर देते हैं। श्रावण में शिव की अर्चना करेंगे तो धरती पर भी सभी दुखों का शमन होगा। आइए हम शिव के बहाने अपने आपको साधें। चित्त की अस्थिरता को साधने का ही तो पावन पर्व है श्रावण मास।