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नृसिंह जयंती उत्सव : ये हैं भगवान नृसिंह का वास्तविक स्वरूप, अपने भक्तों पर नहीं आने देते कोई कष्ट

locationभोपालPublished: May 16, 2019 12:25:19 pm

Submitted by:

Shyam

ऐसे हुआ भगवान नृसिंह का अवतार

narasimha jayanti

नृसिंह जयंती उत्सव : ये हैं भगवान नृसिंह का वास्तविक स्वरूप, अपने भक्तों पर नहीं आने देते कोई कष्ट

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इस जयंती का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति एवं पराक्रम के प्रमुख देवता माने जाते हैं। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने अपने भक्त के कष्टों का नाश करने के लिए ‘नृसिंह अवतार’ लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस साल 19 2019 को मनाई जायेगी नृसिंह जयंती। जानें कैसे उत्पत्ति हुई भगवान नृसिंह की।

 

कथा
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम ‘हरिण्याक्ष’ तथा दूसरे का ‘हिरण्यकशिपु’ था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।

 

राक्षस कुल में एक संत का जन्म
अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ‘प्रह्लाद’ रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था। वह अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था।

 

खंभे को चीरकर नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को “नृसिंह जयंती-उत्सव” के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है।

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