वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार सनातन काल से “
श्राद्ध” की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है प्रत्येक मनुष्य पर देव ऋण, गुरू ऋण और पितृ (माता-पिता) ऋण होते हैं। पितृऋण से मुक्ति तभी मिलती है, जब माता-पिता के मरणोपरांत
पितृपक्ष में उनके लिए विधिवत श्राद्ध किया जाए।
आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने के अमावस्या तक को “पितृपक्ष” या “महालया पक्ष” कहा गया है। मान्यता के अनुसार
पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सहज और सरल मार्ग है। पितरों के लिए खास पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढियों का उद्धार होता है।
गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद है, इसलिए इसे “पितृ तीर्थ” भी कहा जाता है।