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सावन मास में शिवजी के अतिप्रिय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करने से जन्मजन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते है

रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करने से जन्मजन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते है

Aug 08, 2018 / 03:29 pm

Shyam

सावन मास में शिवजी के अतिप्रिय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करने से जन्मजन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते है

वेद में भगवान शिव को ‘रुद्र’ कहा गया है क्योंकि वे दु:ख को नष्ट कर देते हैं । इस समय भगवान शिव के मनभावन श्रावणमास में सभी शिवमन्दिरों में रुद्राभिषेक या रुद्री पाठ की बहार देखने को मिलती है । शिवभक्त सावन मास में शिवलिंग पर रुद्राध्यायी के मन्त्रों से दूध या जल का अभिषेक करते हैं, लेकिन कहा जाता है कि रुद्राष्टाध्याय का पाठ करते हुए शिवाभिषेक किया जाय जो व्यक्ति के जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता हैं ।

 

यजुर्वेद की शुक्लयजुर्वेद संहिता में आठ अध्याय के माध्यम से भगवान रुद्र का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसे ‘रुद्राष्टाध्यायी’ कहते हैं । जैसे मनुष्य का शरीर हृदय के बिना असंभव है, उसी प्रकार शिवजी की आराधना में रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है क्योंकि इसके बिना न तो रुद्राभिषेक संभव है और न ही रुद्री पाठ ही किया जा सकता है ।

 

रुद्राभिषेक
रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रपाठ के साथ जल, दूध, पंचामृत, आमरस, गन्ने का रस, नारियल के जल व गंगाजल आदि से शिवलिंग का रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से अभिषेक करने से मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है और मृत्यु के बाद वह परम गति को प्राप्त होता है ।

 

रुद्राष्टाध्यायी के आठ अध्याय

 

1- रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय को ‘शिवसंकल्प सूक्त’ कहा जाता है, इसमें साधक का मन शुभ विचार वाला होना चाहिए । यह अध्याय गणेशजी को समर्पित हैं, इस अध्याय का पहला मन्त्र श्रीगणेश का प्रसिद्ध मन्त्र है—‘गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधिनां त्वा निधिपति हवामहे । वसो मम ।।

2- रुद्राष्टाध्यायी का द्वितीय अध्याय भगवान विष्णुजी को समर्पित हैं, इसमें 16 मन्त्र ‘पुरुष सूक्त’ के हैं जिसके देवता विराट् पुरुष हैं । सभी देवताओं का षोडशोपचार पूजन पुरुष सूक्त के मन्त्रों से ही किया जाता है, और इसी अध्याय में महालक्ष्मीजी के मन्त्र भी दिए गए हैं ।

 

3- तृतीय अध्याय के देवता इन्द्र हैं, इस अध्याय को ‘अप्रतिरथ सूक्त’ कहा जाता है । इसके मन्त्रों के द्वारा इन्द्र की उपासना करने से शत्रुओं और प्रतिद्वन्द्वियों का नाश होता है ।

4- चौथा अध्याय ‘मैत्र सूक्त’ के नाम से जाना जाता है । इसके मन्त्रों में भगवान सूर्य नारायण का सुन्दर वर्णन व स्तुति की गयी है ।

 

5- रुद्राष्टाध्यायी का प्रधान अध्याय पांचवा है, इसमें 66 मन्त्र हैं । इसको ‘शतरुद्रिय’, ‘रुद्राध्याय’ या ‘रुद्रसूक्त’ कहते हैं । शतरुद्रिय यजुर्वेद का वह अंश है, जिसमें रुद्र के सौ या उससे अधिक नामों का उल्लेख हैं और उनके द्वारा रुद्रदेव की स्तुति की गयी है । भगवान रुद्र की शतरुद्रीय उपासना से दु:खों का सब प्रकार से नाश हो जाता है । दु:खों का सर्वथा नाश ही मोक्ष कहलाता है ।

6- रुद्राष्टाध्यायी के छठे अध्याय को ‘महच्छिर’ कहा जाता है, इसी अध्याय में ‘महामृत्युंजय मन्त्र का उल्लेख है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुत: ।।

 

7- सातवें अध्याय को ‘जटा’ कहा जाता है, इस अध्याय के कुछ मन्त्र अन्त्येष्टि-संस्कार में प्रयोग किए जाते हैं ।

8- आठवे अध्याय को ‘चमकाध्याय’ कहा जाता है, इसमें 29 मन्त्र हैं । भगवान रुद्र से अपनी मनचाही वस्तुओं की प्रार्थना ‘च मे च मे’ अर्थात् ‘यह भी मुझे, यह भी मुझे’ शब्दों की पुनरावृत्ति के साथ की गयी है इसलिए इसका नाम ‘चमकम्’ पड़ा । रुद्राष्टाध्यायी के अंत में शान्त्याध्याय के 24 मन्त्रों में विभिन्न देवताओं से शान्ति की प्रार्थना की गयी है तथा स्वस्ति-प्रार्थनामंत्राध्याय में 12 मन्त्रों में स्वस्ति (मंगल, कल्याण, सुख) प्रार्थना की गयी है ।

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