धर्म-कर्म

शनिवार को चुपचाप शनिदेव पर चढ़ा दे ये दो चीज, जो चाहे मिलकर रहेगा

इस उपाय से प्रसन्न हो जाएंगे शनिदेव

भोपालMar 20, 2020 / 04:21 pm

Shyam

शनिवार को चुपचाप शनिदेव पर चढ़ा दे ये दो चीज, जो चाहे मिलेगा

कहा जाता है किसी के ऊपर जब शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं उनके जीवन में एक के बाद एक सफलता मिलना शुरू हो जाती है। लेकिन अगर किसी पर शनिदेव की कुदृष्टि पड़ जाए तो व्यक्ति अनेक समस्याओं से घिरने लगता है। अगर शनिदेव की कृपा पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन चुपचाप शनि मंदिर में जाकर करें यह उपाय। हर कामना पूरी करेंगे शनिदेव।

शनिदेव के चरणों में काले उड़द के 21 दाने चढ़ा दें। इसके बाद एक कप सरसों के तेल से शनिदेव का अभिषेक “ऊँ शनिदेवाय नमः” मंत्र बोलते हुए करें। इसके बाद श्री शनि चालीसा का पाठ एक बार करें। ऐसा करने से आप जो चाहेंगे शनिदेव वह इच्छा पूरी करेंगे।

शनिवार को चुपचाप शनिदेव पर चढ़ा दे ये दो चीज, जो चाहे मिलेगा

शनि चालीसा
॥ दोह ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥

धन, नौकरी, व्यापार, विवाह सहित कई बाधा दूर कर देगा ये उपाय

पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥
सौरी, मन्द शनी दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥

वनहुं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग वीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥

शनिवार को चुपचाप शनिदेव पर चढ़ा दे ये दो चीज, जो चाहे मिलेगा

हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विकलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥

शनि प्रदोष व्रतः शनिवार शाम ऐसा करते ही प्रसन्न हो जाएंगे महादेव

कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिह सिद्धकर राज समाजा॥

शनिवार को चुपचाप शनिदेव पर चढ़ा दे ये दो चीज, जो चाहे मिलेगा

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी॥

ऐसी हनुमान तस्वीर के दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सारे संकट

जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
॥ इति श्री शनि चालीसा समाप्त॥
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