धर्म-कर्म

आज भी यहां घर के सामने किया जाता है दाह संस्कार

आज भी यहां घर के सामने किया जाता है दाह संस्कार

भोपालMay 09, 2019 / 12:12 pm

Pawan Tiwari

देश भर में आज शंकराचार्य जयंती मनाई जा रही है। सात वर्ष की उम्र में संन्यास लेने वाले शंकराचार्य दो वर्ष की उम्र में सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत को कंठस्थ कर लिया था. यही नहीं, शंकराचार्य शायद पहले और आखिरी ऐसे संन्यासी हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागने के बावजूद दाह संस्कार किया था।
कहा जाता है कि शंकराचार्य के कारण ही केरल के कालड़ी में आज भी घर के सामने दाह संस्कार किया जाता है। दरअसल, शंकराचार्य ने संन्यास लेने से पहले अपनी मां को वचन दिया था कि वह उनके जीवन के अंतिम समय में उनके पास रहेंगे और खुद उनका दाह-संस्‍कार भी करेंगे।
बताया जाता है कि मां को दिए गए वचन के मुताबिक जब शंकराचार्य को अपनी मां के अंतिम समय का आभास हुआ तो वह अपने गांव पहुंच गए। मां ने शंकराचार्य को देखकर अंतिम सांस ली। जब दाह संस्कार की बात आयी तो गांव के लोग विरोध करने लगे और कहने लगे संन्यासी व्यक्ति किसी का अंतिम संस्कार नहीं कर सकता।
लोगों के विरोध पर शंकराचार्य ने कहा कि जब मैंने मां को वचन दिया था, उस वक्त मैं संन्यासी नहीं था। गांव वालों के विरोध करने के बावजूद उन्‍होंने अपनी मां का घर के सामने ही दाह-संस्‍कार किया। लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया। यही कारण है कि केरल के कालड़ी में आज भी घर के सामने दाह संस्कार किया जाता है।
मां के लिए मोड़ दिया था नदी का रुख

कहा जाता है कि शंकारचार्य अपनी माता का बहुत ही सम्मान करते थे। कथा के अनुसार, उनकी मां गांव से दूर बहने वाली पूर्णा नदी में स्नान करने जाती थीं। कहा जाता है कि शंकराचार्य की मातृ भक्ति देखकर नदी ने भी अपना रुख उनके गांव कालड़ी की ओर मोड़ दिया था।

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