सही दिशा का रखें ध्यान भवन के उत्तर-पूर्व के भाग की सतह नीची होनी चाहिए तथा इस तरफ खिडक़ी और दरवाजे अधिक होने चाहिए। इससे वहां रहने वालों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में जल स्त्रोत जैसे बोरिंग, नलकूप, जलाशय आदि न हों वरना पेट या अन्य रोग हो सकते हैं। दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार या चाहरदीवारी अथवा खाली जगह होना शुभ नहीं है। इससे हार्ट अटैक, लकवा, हड्डी एवं स्नायु रोग संभव हैं।
भवन की पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा के बंद या दूषित होने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। रसोई घर में भोजन पकाते समय महिला का मुख अगर दक्षिण दिशा की ओर है तो उसमें त्वचा और हड्डी के रोग हो सकते हैं। पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके रसोई में भोजन बनाना स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
शयन कक्ष के लिए उत्तर-पूर्व दिशा कतई शुभ नहीं है। वरना नींद न आने, पढ़ाई में बाधा, कन्या संतान की प्राप्ति होती है। सोते समय सिरहाना दक्षिण, पूर्व या पश्चिम में होना चाहिए। उत्तर में सिर करके सोना ब्लड प्रेशर और पेट के रोगों का कारण हो सकता है। इसके कई अन्य वास्तु दोष भी होते हैं।
दीवारें हों सही सलामत
भवन में दीवारों का सही सलामत होने का अर्थ यह है कि उसमें कहीं भी दरार न हो और रंग-रोगन उखड़ा हुआ न हो वरना वहां रहने वालों में जोड़ों का दर्द, गठिया, सायटिका, कमर दर्द, स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। भवन के अंदर की दीवारों पर रंग और पेंट भी सोच-समझ कर कराना चाहिए।
गहरा नीला या काला रंग वायु रोग, पेट में गैस, हाथ-पैरों में दर्द, नारंगी या गहरा पीला रंग ब्लड प्रेशर, गहरा चटक लाल रंग रक्त विकार एवं दुर्घटना तथा गहरा हरा रंग सांस, अस्थमा, तपेदिक एवं मानसिक रोगों का कारण बन सकता है। बेहतर स्वास्थ्य के लिए दीवारों पर हल्के रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए।