scriptजब श्रीराम और महादेव में हुआ भयंकर युद्ध, जानिए कौन हुआ परास्त? | When battle fought between lord Rama and Shankar | Patrika News

जब श्रीराम और महादेव में हुआ भयंकर युद्ध, जानिए कौन हुआ परास्त?

Published: Mar 28, 2015 12:40:00 pm

बहुत कम ही लोगों को पता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम और महादेव के बीच प्रलयंकारी युद्ध हुआ

Lord Rama praying Shiva

Lord Rama praying Shiva

बहुत कम ही लोगों को पता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम और महादेव के बीच प्रलयंकारी युद्ध हुआ। पुराणों में विदि्त दृष्टांत के अनुसार यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान लड़ा गया।

बात उन दिनों कि है जब श्रीराम का अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था। यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था। इसी बीच यज्ञ अश्व देवपुर पहुंचा जहां राजा वीरमणि का राज्य था. राजा वीरमणि भगवान शंकर की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था और महादेव ने उन्हें उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान दिया था। महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रूक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। अश्व को बंदी बनाने के कारण अयोध्या और देवपुर में युद्ध होना लाजमी था। राजा वीरमणि अपने भाई वीरसिंह और अपने दोनों पुत्र रूक्मांगद और शुभांगद के साथ विशाल सेना ले कर युद्ध क्षेत्र में आ गए।

एक बार तो परास्त कर दिया देवपुर की सेना को

इधर जब शत्रुघ्न को सूचना मिली कि उनके यज्ञ का घोडा बंदी बना लिया गया है तो वो बहुत Rोधित हुए एवं अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध के लिए युद्ध क्षेत्र में आ गए। भयानक युद्ध छिड़ गया। भरत पुत्र पुष्कल सीधा जाकर राजा वीरमणि से भिड गया। अंत में पुष्कल ने वीरमणि पर आठ नाराच बाणों से वार किया। इस वार को राजा वीरमणि सह नहीं पाए और मुर्छित होकर अपने रथ पर गिर पड़े। उधर वीरसिंह ने हनुमान पर कई अस्त्रों का प्रयोग किया पर उन्हें कोई हानि न पहुंचा सके। हनुमान ने एक विकट पेड़ से वीरसिंह पर वार किया इससे वीरसिंह रक्तवमन करते हुए मूर्छित हो गए। उधर शत्रुघ्न ने राजा वीरमणि के पुत्रों को नागपाश में बांध लिया। उधर राजा वीरमणि की मूर्छा दूर हुई तो उन्होंने देखा कि उनकी सेना हार के कगार पर है। ये देख कर उन्होंने भगवान रूद्र का स्मरण किया।

शंकरजी को भेजनी पड़ी अपनी सेना

महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जान कर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित सारे गणों को युद्ध क्षेत्र में भेज दिया। फिर शुरू हुए इस युद्ध में वीरभद्र ने एक त्रिशूल से पुष्कल का मस्तक काट लिया। उधर भृंगी आदि गणों ने शत्रुघ्न पर भयानक आRमण कर दिया. अंत में भृंगी ने महादेव के दिए पाश में शत्रुघ्न को बांध दिया। हनुमान अपनी पूरी शक्ति से नंदी से युद्ध कर रहे थे। काफी देर लड़ने के बाद कोई और उपाय न देख कर नंदी ने शिवास्त्र का प्रयोग कर हनुमान को पराभूत कर दिया। अयोध्या के सेना की हार देख कर सारे सैनिक शत्रुघ्न, पुष्कल एवं हनुमान सहित श्रीराम को याद करने लगे।

आना पड़ा श्रीराम को भी रणक्षेत्र में

अपने भक्तों की पुकार सुन कर श्रीराम तत्काल ही लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्ष्मण ने हनुमान को मुक्त करा दिया। क्रोधित होकर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिवगणों पर धावा बोल दिया। जल्द ही उन्हें ये पता चल गया कि शिवगणों पर साधारण अस्त्र बेकार है इसलिए उन्होंने महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रदान किए दिव्यास्त्रों से वीरभद्र और नंदी सहित सारी सेना को विदीर्ण कर दिया। श्रीराम के प्रताप से पार न पाते हुए सारे गणों ने एक स्वर में महादेव का आव्हान करना शुरू कर दिया। जब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुए।

श्रीराम ने की युद्ध न करने की विनती

जब महाकाल ने युद्ध क्षेत्र में प्रवेश किया तो उनके तेज से श्रीराम की सारी सेना मूर्छित हो गई। जब श्रीराम ने देखा कि स्वयं महादेव रणक्षेत्र में आए हैं तो उन्होंने शस्त्र का त्याग कर भगवान रूद्र को दंडवत प्रणाम किया एवं उनकी स्तुति की। उन्होंने महाकाल की स्तुति करते हुए कहा कि ये जो अश्वमेघ यज्ञ मैंने किया है वो भी आपकी ही इच्छा से ही हो रहा है इसलिए हमपर कृपा करें और इस युद्ध का अंत करें।

आखिरकार करना पड़ा महासंग्राम

ये सुन कर भगवान रूद्र बोले की हे राम, आप स्वयं विष्णु के दुसरे रूप हैं मेरी आपसे युद्ध करने की कोई इच्छा नहीं है फिर भी चूंकि मैंने अपने भक्त वीरमणि को उसकी रक्षा का वरदान दिया है इसलिए मैं इस युद्ध से पीछे नहीं हट सकता अत: संकोच छोड़ कर आप युद्ध करें। श्रीराम ने इसे महाकाल की आज्ञा मान कर युद्ध करना शुरू किया। दोनों में महान युद्ध छिड़ गया। श्रीराम ने अपने सारे दिव्यास्त्रों का प्रयोग महाकाल पर कर दिया पर उन्हें संतुष्ट नहीं कर सके। अंत में उन्होंने पाशुपतास्त्र का संधान किया और भगवान शिव से बोले की हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता, इसलिए हे महादेव आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आपपर हीं करता हूं। ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया।

मिला जीवनदान

वो अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समां गया और भगवान रूद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। इसपर श्रीराम ने कहा कि हे भगवान! यहां इस युद्ध क्षेत्र में भ्राता भरत के पुत्र पुष्कल के साथ असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, उन्हें कृपया जीवन दान दीजिए। महादेव ने मुस्कुराते हुए तथास्तु कहा और पुष्कल समेत दोनों ओर के सारे योद्धाओं को जीवित कर दिया। इसके बाद उनकी आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और अपना राज्य रूक्मांगद को सौंप कर वे भी शत्रुघ्न के साथ आगे चल दिए।
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