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आजादी के बाद से जिले में डांग के गांवों को बिजली का इंतजार

locationधौलपुरPublished: May 26, 2020 08:39:34 pm

Submitted by:

Naresh

धौलपुर. कहने को गांव-गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए सरकार दावे कर रही है, लेकिन दावों की असल हकीकत किसी से छुपी नहीं है। जिले के डांग क्षेत्र में करीब आधा दर्जन गांव आज भी बिजली आने का इंतजार कर है। बिजली के अभाव में इन गांवों में अधिकांश युवा अशिक्षित होने के साथ-साथ बेरोजगार भी है।

 After independence, the villages of Dang in the district wait for electricity

आजादी के बाद से जिले में डांग के गांवों को बिजली का इंतजार

आजादी के बाद से जिले में डांग के गांवों को बिजली का इंतजार
-ग्रामीणों की मांग पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
-बिजली के अभाव में गांवों के अशिक्षा का घेरा
-22 किलोमीटर दूर कस्बा बाड़ी पिसने जाता है ग्रामीणों का आटा
धौलपुर. कहने को गांव-गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए सरकार दावे कर रही है, लेकिन दावों की असल हकीकत किसी से छुपी नहीं है। जिले के डांग क्षेत्र में करीब आधा दर्जन गांव आज भी बिजली आने का इंतजार कर है। बिजली के अभाव में इन गांवों में अधिकांश युवा अशिक्षित होने के साथ-साथ बेरोजगार भी है। ग्रामीणों ने कई बार स्थानीय सरपंच व अन्य सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर बिजली जैसी मूलभूत सुविधा की मांग भी की, लेकिन यह मांग हर बार आश्वासनों में दब कर रह गई। डांग क्षेत्र में राजनैतिक उपेक्षा के साथ-साथ प्रशासनिक उदासीनता के कारण डांग के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर बने हुए है।
उल्लेखनीय कि बाड़ी क्षेत्र के डांग इलाके के कुदिन्ना ग्राम पंचायत के गांव ऊटआ का पुरा, समर्रा, पिछेडिय़ापुरा, मरजीपुरा, लेसपुरा आदि के ग्रामीण आज अभी तक बिजली आने की आस लगाए हुए है। ऐसे में ग्रामीण को बिजली के अभाव में तमाम परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बिजली के लिए ग्रामीणों ने स्थानीय सरपंच से भी कई बार मुलाकात कर गांव में बिजली की व्यवस्था कराने की मांग की, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिले, लेकिन बिजली की कोई व्यवस्था नहीं हुई। बिजली के अभाव में इन गांवों में शिक्षा स्तर भी निम्म है। गांवों अधिकांश युवा अशिक्षित है। ग्रामीणों ने बताया कि बिजली नहीं होने के कारण शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है, डांग में विद्यालयों की दूरी भी गंाव से अधिक है, जिस कारण कोई भी पढऩे नहीं जाता है। इसके अलावा गांव में बिजली नहीं होने के कारण गर्मियों में ग्रामीणों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है, ग्रामीणों ने बताया कि सरकारी हैंडपंप से जो पानी आता है, उस पानी से गांव के केवल दो घरों की पूर्ति होती है, ऐसे में ग्रामीणों को दूर जाकर पानी लाना पड़ता है। इसके अलावा गांव में बोरिंग के जरिए पानी प्राप्त करने के लिए डीजल इंजन का इस्तेमाल करते है। ग्रामीणों ने बताया कि गर्मियों के दौरान गांव में हालत और खराब हो जाती है। पानी की कमी के चलते कई लोग तो पशुओं को लेकर पलायन कर जाते है और बारिश आने के बाद वापस लौटते है। इसके अलावा गर्मी में अधिकांश ग्रामीण बीमारियों से ग्रसित भी हो जाते है।
बाड़ी में पिसने जाता है गांव का गेहूं
ग्रामीणों ने बताया के गांव में बिजली नहीं होने के कारण गांव ऊटआ का पुरा, समर्रा, पिछेडिय़ापुरा, मगजीपुरा, लेसपुरा के ग्रामीणों का गेहूं का आटा पिसने के लिए 22 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा बाड़ी में जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि जिन आसपास के गांवों में बिजली की सुविधा है, वहां बिजली की नियमित तौर पर सप्लाई नहीं होती है, ऐसे में स्थानीय ग्रामीणों ने अपने-अपने घरों में छोटी वाली आटा पिसने की मशीनें लगा रखी है। इनका उपयोग वे केवल अपने घर के लिए ही करते है। ऐसे में जिन गांवों में बिजली नहीं है उनके ग्रामीण ट्रेक्टर-ट्रॉली के जरिए गेहूं को पिसने के लिए कस्बा बाड़ी भेजते है। जिन गांवों में बिजली नहीं है, उन ग्रामीणों ने आपसी सामजस्यं ऐसा बना लिया है कि किसी भी ग्रामीण का ट्रेक्टर-ट्रॉली अगर बाड़ी जाता है, तो वह आसपास के गांवों संदेशा भेज देता है। इस ट्रेक्टर-ट्रॉली में ग्रामीण रोजमर्रा की जरूरत का सामान भी बाड़ी से ही लेकर आते है। ग्रामीणों ने बताया कि डांग क्षेत्र में सरकार की ओर से कोई भी बस या अन्य साधन की व्यवस्था नहीं की गई, ऐसे में ग्रामीण स्वयं के वाहनों के भरोसे है।
शिक्षा का अभाव
गांव ऊटआ का पुरा के ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में केवल एक युवक सरकारी अध्यापक है, जबकि अधिकांश ग्रामीण युवा अशिक्षित है। सरकारी विद्यालय भी गांव से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर है और गांव में भी कोई पढ़ा-लिखा नहीं होने के कारण बच्चों को भी नहीं पढ़ा पा रहे है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में बिजली नहीं होने के कारण जो युवा पढ़ रहे है, उन्होंने बाड़ी कस्बे में किराए पर कमरा ले रखा है। गांव के अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। अशिक्षित व बेरोजगार होने के कारण कई युवाओं अविवाहित भी है।
बिजली के अभाव में बीमारियों का प्रकोप
ग्रामीणों ने बताया कि बिजली के अभाव में गर्मी के मौसम में परेशानियों और बढ़ जाती है। बिजली नहीं होने के कारण अधिकांश ग्रामीण घरों के बार व छतों पर खुले में सोने को मजबूर है। ऐसे में मक्खी-मच्छरों के प्रकोप के चलते ग्रामीण बीमार हो जाते है। ऐसे में गांव में बीमारियों का प्रकोप बना रहता है।
गर्मी में बढ़ जाती ही पानी की समस्या
ग्रामीणों ने बताया के जिले के डांग क्षेत्र पूरी तरह बारिश के पानी पर निर्भर रहता है। बारिश के दौरान क्षेत्र के जलाशयों में पानी भर जाता है, इस पानी का उपयोग ग्रामीणों की ओर से पशुओं और नियमित दिनचर्या के कार्य में किया जाता है। गर्मी शुरू होने के बाद जलाश्यों में भरा पानी सूख जाता है, जिसके कारण पशुओं के पेयजल के लिए कई गांवों के लोग तो पलायन ही कर जाते है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में जो समरर्सिबल लगे हुए है, उनमें अत्यधिक गहराई में पानी होने के कारण और खर्च अधिक होने के चलते ग्रामीण इसे लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है। ऐसे में गांव में लगे सरकारी हैण्डपंपों से पानी आता है, उससे केवल दो घरों की ही पूर्ति हो पाती है, ऐसे में ग्रामीणों को पानी के काफी दूर स्थान तक जाना पड़ता है। गांवों के कई हैंडपंप क्षतिग्रस्त भी पड़े हुए है।
लॉक डाउन ने तोड़ी डांग के ग्रामीणों की कमर
देश में लागू लॉक डाउन का असर डांग क्षेत्र के गांवों के ग्रामीणों में अत्यधिक पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि बिजली के अभाव में अधिकांश ग्रामीण पशुपालन और खेती पर निर्भर है। गर्मी के मौसम में खेती संबंधित कार्य नहीं होने के कारण पशुपालन ही एकमात्र आमदनी का जरिया रह जाता है। लॉकडाउन से पहले ग्रामीणों की ओर से दूध 35 से 40 रुपए प्रतिकिलो में दूध के्रता को उपलब्ध कराया जाता था, लेकिन दूध के्रता ने लॉकडाउन के बाद शहरी क्षेत्र में दूध की खपत कम होना बताते हुए 15 से 25 रूपए तक में खरीद की मांग की जा रही है। ग्रामीण अगर दूध को नहीं बेचे तो घर खर्च के कार्य प्रभावित होते है और बेचते है तो घर की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती। ऐसे में ग्रामीण में आगे कुआं, पीछे खाई की स्थिति बनी हुई है।

मैं 70 साल से देख रहा हूं अभी तक बिजली गांव में नहीं पहुंची है। कई बार फाइलें भी बनाई, लेकिन कोई कनेक्शन करने ही नहीं आया। सभी ग्रामीण परेशान है।
कप्तान सिंह, ग्रामीण

गांव में बिजली नहीं है, ऐसे में हम लोग बच्चों को पढ़ाने की सोच भी नहीं सकते। गांव में अधिकांश लोग अशिक्षित है। ना जाने हमारे गांव में कब बिजली आएंगी।
विमला देवी, ग्रामीण
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हम सब गांववालों ने बिजली के बिना जीना सीख लिया है। अगर बिजली आती है तो ठीक, नहीं आती तो भी ठीक। ऐसे ही समय और भी गुजर जाएंगा।
मंगो, स्थानीय ग्रामीण
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मैं अशिक्षित हूं और खेती और पशुपालन का काम करता हूं, कई गांवों को देखकर सभी ग्रामीणों को आस रहती है कि यहां भी बिजली आ जाएंगी।
भोला, ग्रामीण

बिजली के कारण पानी की समस्या का ग्रामीणों को करना पड़ रहा है। ग्रामीण दूर स्थान से पानी लाने को मजबूर है। बिजली होती तो गांव तक पानी भी आ जाता।
गोरेलाल, ग्रामीण
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