राजाखेड़ा में जर्जर नावों का अवैध संचालन
राजाखेड़ा के चंबल क्षेत्र में गढ़ी जाफर घाट , अंडवा पुरैनी घाट आदि मुख्य घाटों से प्रतिदिन करीब आधा दर्जन से अधिक नावों का संचालन मध्य प्रदेश की सीमा में पहुंचाने के लिए किया जाता है। यहां संचालित होने वाली नावें दशकों पुरानी है और हाल में पूरी तरह जर्जरावस्था में है। इनकी दशा सुधारने के प्रयास कभी नहीं हुए न ही इनको लाइसेंस देकर इनकी नियमित जांच प्रक्रिया अपनाई गई है। नावों पर क्षमता से कई गुना सवारियों को बैठाया जाता है और साथ मे कृषि उपज, दोपहिया वाहन, व्यापारिक समान भी सवारियों के साथ ढोया जाता है । जहां एक ओर राजाखेड़ा से मध्य प्रदेश की सड़क सीमा की दूरी करीब 75 किलोलोमीटर से भी ज्यादा है, जबकि चम्बल नदी करके यह दूरी मात्र 25 किलोमीटर ही रह जाती है। ऐसे में 50 किलोमीटर का फेर बचाने के चक्कर में ही लोग नावों के भरोसे ज्यादा रहते है । इसके अलावा राजाखेड़ा के चंबल तटवर्ती गांवों के लोगों की रिश्तेदारियों भी मध्यप्रदेश में ही काफी ज्यादा है । इसलिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों का आना।जाना बहुतायात में होता है।
सरमथुरा में साधनों का अभाव, इसलिए नावों का सहारा
उपखंड क्षेत्र के डांग इलाके में बसे एक दर्जन गांव के लोग अपनी दैनिक जरूरतें पूरी करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर भी प्रतिदिन नाव की सवारी कर अपना काम चलाते हैं, हालांकि बीते कई सालों में कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं लेकिन सब कुछ जानते हुए भी उनकी यह दिनचर्या बनी हुई है। क्षेत्र के मदनपुर इलाके के कारीतीर झिरी घाट शंकरपुर घाट आदि पर प्रतिदिन चंबल नदी को पार कर मध्य प्रदेश के सबलगढ़, कैलारस आदि क्षेत्रों में जाने के लिए ग्रामीण बड़ी संख्या में नाव की सवारी कर वहां पहुंचते हैं। स्थानीय ग्रामीण चंबल पार करके मात्र 10 या 15 किलोमीटर दूर बसे मध्य प्रदेश के सबलगढ़ कैलारस क्षेत्र में जाते हैं और वहां से अपना दैनिक जरूरतों का सामान खरीद कर वापस गांव पहुंचते हैं, इस आवागमन के दौरान 20 से 30 रूप्ए तक का ही खर्चा आता है। जबकि सड़क मार्ग से सौ से डेढ़ सौ रुपए तक किराए का खर्चा लगता है एवं समय भी अधिक लगता है। यहां के डांग इलाके में बसे इन गांवों तक पक्की सड़कें भी नहीं है ऐसे में यहां आने जाने का कोई साधन भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसे में लोगों के नावें ही आवागमन का माध्यम बनी हुई है।
हादसों के बाद भी नहीं चेत रहा प्रशासन
चंबल नदी में नावों के डूबने जैसी घटनाओं के बाद भी जिला प्रशासन की ओर से नावों के संचालन पर रोक लगाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए गए जा रहे है। हालांकि चंबल नदी का जल स्तर बढऩे के दौरान ही केवल नावों के संचालन को रोका जाता है, इसके बाद स्थिति पहले जैसी ही हो जाती है। गंभीर बात यह है कि जिले के घाटों से संचालित होने वाली अधिकांश नावें जर्जरावस्था में है। ऐसे में जिले के परिवहन विभाग की कार्य शैली पर सवाल सवाल खड़ा हो गया है कि वह नावों के स्थिति को देखकर भी मूक दर्शक क्यों बनी हुई है। अगर जल्द ही जिले के विभिन्न घाटों से संचालित हो रहे नावों के अवैध संचालन को नहीं रोका गया तो जिले में बड़ा हादसा होने की संभावना बनी हुई है।
मनोज कुमार वर्मा, जिला परिवहन अधिकारी, धौलपुर