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चम्बल की बाढ़ निगल गई सैकड़ों बीघा कृषि भूमि

locationधौलपुरPublished: Oct 13, 2019 10:56:32 am

Submitted by:

Mahesh gupta

गत दिनों चम्बल में आई बाढ़ ने जहां एक ओर फसल, घर व सामान को नष्ट कर दिया, वहीं राजस्थान व मध्यप्रदेश के तटवर्ती गांवों की सैकड़ों बीघा भूमि को ही निगल गई।

चम्बल की बाढ़ निगल गई सैकड़ों बीघा कृषि भूमि

चम्बल की बाढ़ निगल गई सैकड़ों बीघा कृषि भूमि

धौलपुर. गत दिनों चम्बल में आई बाढ़ ने जहां एक ओर फसल, घर व सामान को नष्ट कर दिया, वहीं राजस्थान व मध्यप्रदेश के तटवर्ती गांवों की सैकड़ों बीघा भूमि को ही निगल गई। जिससे अनेक ग्रामीणों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है। बाढ़ ने इन प्रदेशों के तटवर्ती गांवों के वाशिंदों को पहली बार यह दंश नहीं दिया है, बल्कि 1996 की बाढ़ में भी धौलपुर जिले के कछियारा क्षेत्र के कई गांवों के करीब एक सौ से अधिक परिवार इसी के चलते पलायन कर गए थे। इस बार की बाढ़ ने भी इसी क्षेत्र के कई गांवों के दर्जनों परिवारों को एक बार फिर पलायन को मजबूर कर दिया है।
इन गांवों के किसान हुए भूमिहीन
जिले की राजाखेड़ा तहसील के कछियारा क्षेत्र के गांव गडऱाई, पापरीपुरा व बेरखेड़ा भी चम्बल नदी के किनारे बसे हुए हैं। चम्बल में आने वाली बाढ़ से पानी के तेज बहाव के कारण तटवर्ती भूमि में कटाव होता है। इससे कई बीघा भूमि को नदी का बहाव क्षेत्र बना देती है। जिससे अनेक किसान भूमिहीन हो जाते हैं। ऐसा ही इस बार आई बाढ में भी हुआ है। इन गांवों के फूली खां, रामअवतार, प्रकाश, संतोष, कुवंरसेन, जीतेन्द्र, गीताराम, रघुवीर, उदय सिंह, रामखिलाड़ी, बैनी, नथुआ, मातादीन, अतर सिंह, अजमेर सिंह, पुरुषोत्तम, चोब सिंह, गंगाराम, रामहेत, बनवारी, महेश पुत्र दर्शन, महेश पुत्र चिरोंजी, फूलसिंह, रामवीर, चरन सिंह, लटूरी, रामेश्वर आदि किसान हैं। जिनकी कृषि भूमि ही बाढ़ के आगोश में समा गई है। इनमें से कुछ तो पूरी तरह भूमिहीन हो गए हैं और कुछ के पास नाम मात्र की ही भूमि शेष रह गई है।
मध्यप्रदेश के भी गांव हुए प्रभावित
राजस्थान के इन गांवों के अलावा मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के कुथियाना क्षेत्र के तटवर्ती गांव कुथियाना, बीलपुर, रिठौरा व महूखेड़ा के भी दर्जनों किसानों की भूमि बाढ़ के कटाव से नदी का हिस्सा बन गई है।
भूमि हीन हुए किसानों को कैसे मिलेगा मुआवजा
राजस्थान सरकार ने बाढ़ पीडि़तों को फसल खराबे, घरेलू सामान व अन्य प्रकार के नुकसान के आधार पर मुआवजा देने की घोषणा की है इसके लिए गिरदावरी व सर्वे का कार्य जारी है। लेकिन यहां समस्या यह है कि जिन किसानों की भूमि ही चली गई। उन्हें किस प्रकार से मुआवजा मिलेगा। गत बाढ़ के पीडि़तों को भी इसी वजह से आज तक मुआवजा नहीं मिल सका है।
कैसे चुकेगी बैंक ऋण की किश्त
जले में बाढ़ के कटाव में भूमि गंवा चुके किसानों के सामने आजीविका के साथ-साथ बैंकों से लिए गए फसली व अन्य प्रकार के कृषि ऋणों की अदायगी का भी संकट उत्पन्न हो गया है। इन गांवों में अधिकतर लघु व सीमांत कृषक ही हैं। जिन्होंने अपनी कृषि भूमि के पेटे फसली, ट्रैक्टर आदि प्रकार के ऋण ले रखे हैं।
अब ये किसान बाढ़ के कटाव के कारण भूमिहीन होने से ना तो बैंक ऋण की किश्तें ही चुका पाएंगे और समय पर किश्त ना चुका पाने के कारण बैंक भी अपने यहां रहन रखी भूमि को किसी भी प्रकार अपने कब्जे में ही ले पाएंगे।
सरकार अन्यत्र भूमि आवंटित करे तो पलायन रुके
इस संबंध में राजस्व विशेषज्ञों का कहना है कि कटाव में गई कृषकों की भूमि को सरकार सरकारी भूमि घोषित कर दे और पीडि़तों को अन्यत्र उसी अनुपात में सिवायचक भमि में से भूमि आवंटित कर दे। इससे उन्हें आजीविका का साधन मिल जाएगा और पलायन नहीं करना पड़ेगा। गांव के प्रत्येक किसान की भूमि कटाव में गई है। कुछ तो पूरी तरह भूमिहीन ही हो गए हैं। 1996 की बाढ़ में भी बहुत जमीन कटाव में गई थी जिससे अनेक किसान पलायन कर गए हैं।
बृजमोहन कृषक गडऱाई
1996 के भूमिहीनों को नहीं मिल सका मुआवजा
इसी प्रकार 1996 में आई बाढ़ में भी इन्हीं गांवों के करीब एक सौ परिवार भूमिहीन हो गए थे। जिससे वे सभी यहां से पलायन कर गए और उन्होंने सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में पे्रम नगर नामक बस्ती बसा ली। कहने को तो ये सभी आज भी धौलपुर जिले के राजस्व अभिलेखों के मुताबिक कृषि भूमि धारक हैं, लेकिन भौतिक रूप से यह किसान भूमिहीन हो चुके हैं और इनकी भूमि पर चम्बल के पानी का रेला बह रहा है। 1996 की बाढ़ में कटाव में गई भूमि आज नदी के बीचों-बीच टापू के रूप में दिखाई देती है।

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