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जेल अधीक्षक की सीनाजोरी, कोर्ट के आदेश की नहीं कर रहा पालना

locationसुरजपुरPublished: Oct 07, 2016 03:22:00 pm

न्यायालय के आदेश के बाद भी जिला कारागृह आगरा द्वारा एक बंदी को रिहा नहीं करने के मामले में जेल अधीक्षक आगरा से कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा है।

न्यायालय के आदेश के बाद भी जिला कारागृह आगरा द्वारा एक बंदी को रिहा नहीं करने के मामले में जेल अधीक्षक आगरा से कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा है।

कोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार सरकार बनाम सुरेन्द्र वगैरह प्रकरण में राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ ने 17 सितम्बर को आदेश जारी कर अपील के निस्तारण तक दूल्हे खां का नगला निवासी आरोपित की सजा को स्थगित किया था। साथ ही आरोपित की जमानत स्वीकार करते हुए विचारण न्यायालय को आरोपित को जमानती मुचलके पेश करने पर छोडऩे का आदेश दिया था।
इसकी पालना में न्यायालय विशेष न्यायाधीश (डकैती प्रभावित क्षेत्र) धौलपुर ने आरोपित को एक-एक लाख रुपए की दो जमानत व दो लाख रुपए के मुचलके पर छोडऩे का आदेश 22 सितम्बर को दिया। आरोपित ने दो जमानत व मुचलका न्यायालय में पेश कर दिए। जिस पर उसे रिहा करने के आदेश न्यायालय ने जारी कर दिए, लेकिन इन आदेशों की पालना करने के बजाए जिला कारागार आगरा में निरुद्ध उक्त आरोपित को जेल प्रशासन द्वारा रिहा नहीं किया गया।
यह कहा जेल प्रशासन ने

जेल प्रशासन ने उक्त आरोपित की रिहाई नहीं करने के संबंध में यह तर्क दिए कि रिहाई आदेश पर सजा धाराओं का अंकन नहीं होने से आदेश का सजायाबी वारंट से मिलान कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। वारंट पर अंकित दंडादेश में दो हजार रुपए का अर्थदंड अधिरोपित है, लेकिन रिहाई आदेश पर इसके संबंध में कोई निर्देश नहीं हैं।
आपके खिलाफ क्यों न कार्रवाई हो

जेल प्रशासन द्वारा जिन दो बिंदुओं पर मार्गदर्शन चाहा गया उन्हें विशेष न्यायाधीश (डकैती प्रभावित क्षेत्र) सुरेशप्रकाश भट्ट ने गैर जिम्मेदाराना करार देते हुए कहा कि उक्त आदेश आरोपित की जमानत आदेश के संबंध में जारी किया गया है। जब उक्त आदेश में एफआईआर नंबर व एसटी नंबर स्पष्ट रूप से लिखा गया था, तो सजायाबी वारंट से उसका मिलान करना निरर्थक था।
उक्त प्रकरण की पत्रावली इस न्यायालय में नहीं है। पत्रावली उच्च न्यायालय में लंबित है। न्यायाधीश भट्ट ने कहा कि एफआईआर नंबर व एसटी नंबर मिलान होने के बाद भी आरोपित को रिहा न कर अवैध रूप से आरोपित को अभिरक्षा में निरूद्ध रखा गया है, ऐसे मे क्यों न आपके खिलाफ विधि अनुसार कार्रवाई की जाए। न्यायालय ने इस संबंध में जेल अधीक्षक जिला कारागार आगरा को दस दिन के अंदर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।

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