scriptधौलपुर से एक कविता रोज….मजदूर | dholpur se ek kavita roj..... majdur | Patrika News

धौलपुर से एक कविता रोज….मजदूर

locationधौलपुरPublished: Sep 19, 2020 04:15:17 pm

Submitted by:

Naresh

देश का देखो कैसा मजदूर हो गया। हाल है बेहाल वो मजबूर हो गया
मजबूर है मजदूर, कोई चाह नहीं है जो राह बनाता था उसको राह नहीं है

dholpur se ek kavita roj..... majdur

धौलपुर से एक कविता रोज….मजदूर

धौलपुर से एक कविता रोज….मजदूर

देश का देखो कैसा मजदूर हो गया।
हाल है बेहाल वो मजबूर हो गया

मजबूर है मजदूर, कोई चाह नहीं है
जो राह बनाता था उसको राह नहीं है
नीचे से जाती रही इनके जमीन पर
ये सीढिय़ां लगाते रहे आसमान पर
दस बीस ऊंची बिल्डिंगें वो चिनते रहे
और अपने लिए झोपड़ी ढूढ़ते रहे।
छाले पाओं में हैं भूख आँखों की झील में
वो एडिय़ां घिसते रहे जूतों की मील में
ढलती रही जवानी दुनियां बनाते बनाते
कुछ राह में ही रह गए घर को आते आते
मासूम नजर ढूढंती है गांव और नगर
जाने अपना घर ये कितना दूर हो गया
देश का देखो कैसा मजदूर हो गया
मजदूर इस कदर सडक़ों पर न रोता
कोरोना तब तू आता जब चुनाव होता
आज जूं रेंगती नहीं जिनके कान पर
वो घर तुम्हे पहुंचाते सर पे बिठा कर
खाने वाले थे बहुत बनाने वाले आप थे
कमाने वाले लाखों के हजारों हाथ आप थे
दुनियां बनाने वाला चकनाचूर हो गया
देश का देखो कैसा मजदूर हो गया

कवि गिर्राज शर्मा राजाखेड़ा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो