धूप में तुम शजऱ जैसी छाया बने,
ग़म नहीं पास अब मीत आता मेरे,
तुम मिले तो मुझे हर ख़ुशी मिल गयी।
तुम मिले…. कविता पत्नी की चाह सुन लो मेरे प्रियतम प्यारे,
तुम पर मैंने तन-मन वारे।
संग तेरे अब मुझको रहना है,
पर पहले कुछ तुमसे कहना है।
है नया सफर और नई डगर है,
मुझसे गलती होने का भी डर है।
मैं हूं ना, बस इतना कहना
गलती पर मेरी, मेरे साथ में रहना।
खाना नित अति स्वाद बनाऊंगी
मैं सबके मन में झट भा जाऊंगी
नमक मिर्च से जब बेस्वाद हो खाना
बस मैके के तुम ताने न सुनना।
इंसां हंू मै, थक भी जाऊंगी,
आज नहीं, कह के सो जाऊंगी।
मेरे मन को तुम भी पढ़ लेना,
कल फिर होगी मिलन की रैना।
गर पुरुष मित्र कोई हो मेरा,
और शक का भी हो घना अंधेरा।
सहधर्मिणी जान मुझको समझना,
व्यभिचारिणी जान के न दूर भागना।
जब ताप का मुझ पर हो पहरा,
मन में संताप विरह का गहरा,
मैं बस एक साथ तुम्हारा चाहूंगी
मैं तो हर बाधा से लड़ जाऊंगी।
तकरार भी होगी कभी-कभी,
मनुहार भी होगी कभी-कभी
तुमसे सम्मान अगर मैं पाऊंगी,
सच मानो सम्पूर्ण तभी हो जाऊंगी।
दुविधा में कभी जो घिर जाओगे,
और कोई राह अगर न तुम पाओगे।
बस अहम त्याग कर ये कह देना
जब तुम हो संग में तो क्या डरना।
बबीता शर्मा, अध्यापिका, निजी स्कूल, धौलपुर।