#Janmashtmi 2022: धौलपुर. भगवान श्रीकृष्ण को माखन चोर, नन्द गोपाल, मोर मुकुट धारी, बांकेबिहारी जैसे तमाम नामों से जाना जाता है लेकिन, धौलपुर में कृष्ण भगवान को रणछोड़ नाम से जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का यह नाम कैसे और क्यों पड़ा, इसकी एक कहानी है। इस कहानी का साक्षी बना है धौलपुर जिला, यहां भगवान श्रीकृष्ण एक लीला के बाद रणछोड़ के नाम से पुकारे गए। मथुराधीश कृष्ण ने धौलपुर स्थित श्यामाचल की गुफा में ही कालयवन नामक राक्षस को महाराज मचुकुंद से भस्म कराया था। यह गुफा आज भी धौलपुर में स्थित है। इसका उल्लेख विष्णु पुराण व श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के पंचम अंश 23वें व 51 वें अध्याय में मिलता है। इसके अनुसार त्रेता युग में महाराजा मांधाता के तीन पुत्र हुए। ये तीन अंबरीष, पुरु और मचुकुंद। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इन्द्र ने महाराज मचुकुंद को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय मिलने के बाद महाराज मचुकुंद ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने वरदान दिया कि जो भी उनके विश्राम में खलल डालेगा। वह मचुकुंद की नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जाएगा। देवताओं से वरदान लेकर महाराज मचुकुंद श्यामाचल पर्वत (जहां अब मौनी सिद्ध बाबा की गुफा है) की एक गुफा में आकर सो गए।
जरासंध ने की 18वीं बार मथुरा पर चढ़ाई जब जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की तो कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन महर्षि गाग्र्य का पुत्र तथा म्लेच्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था। भगवान शंकर से उसे युद्ध में अजेय रहने का वरदान भी मिला था। भगवान शंकर के वरदान को पूरा करने के लिए श्रीकृष्ण रण क्षेत्र छोड़ कर भागे। इसलिए ही भगवान श्रीकृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से करीब सौ किलोमीटर दूर तक भगवान श्रीकृष्ण श्यामाचल पर्वत की गुफा में आ गए। जहां पर महाराज मचुकुंद सो रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मचुकुंद महाराज के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गए।
भस्म हुआ कालयवन कालयवन भी श्रीकृष्ण का पीछा करता हुआ उसी गुफा में आ गया। दंभ में भरे कालयवन ने सो रहे मचुकुंद महाराज को श्रीकृष्ण समझकर ललकारा। इस पर मचुकुंद महाराज जागे और उनकी नेत्रज्योति से कालयवन वहीं भस्म हो गया।
भगवान के चरण चिह्न की पूजा यहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने मचुकुंद को विष्णुरूप में दर्शन दिए। इसके बाद मचुकुंद महाराज ने श्रीकृष्ण के आदेश से पांच कुंडीय यज्ञ किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यज्ञ के दौरान भगवान श्रीकृष्ण भी यज्ञस्थल पर पहुंचे। मान्यता है कि आज भी मचकुंड सरोवर के किनारे भगवान के चरण चिह्न मौजूद हैं। तीर्थराज मचकुंड सरोवर पर देवछठ पर लक्खी मेला भरता है। जिसमें कई प्रदेशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
इनका कहना है विष्णु पुराण व श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के पंचम अंश 23वें व 51 वें अध्याय में इसका उल्लेख है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के चरणचिह्न होने की भी मान्यता है। – महंत कृष्णदास, लाड़ली जगमोहन मंदिर, मचकुंड धौलपुर