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ईमानदारी को बनाया जीवन लक्ष्य, अब सेवानिवृत्ति के बाद भी जनसेवा में जीवन समर्पित

locationधौलपुरPublished: Oct 29, 2020 06:24:31 pm

Submitted by:

Naresh

राजाखेड़ा. मनुष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए ना जाने क्या-क्या प्रयास करता है, लेकिन अगर वह अपने जीवन में कर्तव्य निष्ठा व ईमानदारी के मात्र दो मंत्रों को उतार ले तो हो सकता है प्रारम्भ मै कुछ परेशानियां आए, लेकिन अगर वह उक्त दोनों मंत्रों का मनोयोग से पालन करता है तो धीरे धीरे सफलता उसके जीवन का अंग बन जाती है। यह चरितार्थ करके दिखाया है शिक्षा विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी योगेन्द्र सिंह राना ने। बचपन से उन्हें अपनी मां द्वारा उक्त मंत्रों की शिक्षा दी गई थी।

 Life goals made to honesty, now dedicate life in public service even after retirement

ईमानदारी को बनाया जीवन लक्ष्य, अब सेवानिवृत्ति के बाद भी जनसेवा में जीवन समर्पित

ईमानदारी को बनाया जीवन लक्ष्य, अब सेवानिवृत्ति के बाद भी जनसेवा में जीवन समर्पित
राजाखेड़ा. मनुष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए ना जाने क्या-क्या प्रयास करता है, लेकिन अगर वह अपने जीवन में कर्तव्य निष्ठा व ईमानदारी के मात्र दो मंत्रों को उतार ले तो हो सकता है प्रारम्भ मै कुछ परेशानियां आए, लेकिन अगर वह उक्त दोनों मंत्रों का मनोयोग से पालन करता है तो धीरे धीरे सफलता उसके जीवन का अंग बन जाती है। यह चरितार्थ करके दिखाया है शिक्षा विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी योगेन्द्र सिंह राना ने। बचपन से उन्हें अपनी मां द्वारा उक्त मंत्रों की शिक्षा दी गई थी।
बचपन में विषम आर्थिक परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने सेकंडरी व हायर सेकेण्डरी की परीक्षा विज्ञान वर्ग से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। एसटीसी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद वह अध्यापक बने, लेकिन अपनी पढ़ाई को जारी रखा। सेवारत रहते हुए बीएड, एमएड, एमए राजनीति विज्ञान व इतिहास से किया। आरएएस व पुलिस सब इंस्पेक्टर की परीक्षा एक ही बार में उत्तीर्ण की। इसके बाद प्रधानाध्यापक माध्यमिक विद्यालय के पद पर 1992 में चयनित हुए। इस पद पर रहते हुए उन्होंने जिले के विभिन्न विद्यालयों में छात्र अनुशासन, परीक्षा परिणाम एवं भवन निर्माण के क्षेत्र में उललेखनीय कार्य किया। बसई घीयाराम में दान में विद्यालय के लिए भूमि भी प्राप्त की।
वरिष्ठ जिला शिक्षा अधिकारी एवं बीईईओ के रूप में धौलपुर एवं राजाखेड़ा में उन्होंने सेवाएं दीं।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय राजाखेड़ा में उन्होंने विद्यालय अनुशासन, परीक्षा परिणाम, भवन निर्माण, विद्यालय का सौंदर्यीकरण एवं जन सहयोग से विद्यालय के लिए भूमि क्रय कर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। जिसकी चर्चाएं आज भी की जाती हैं। अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक पद पर धौलपुर में रहते हुए सराहनीय कार्य किया। यद्यपि उन्हें विभागीय नियमों, कार्यालय पद्धति, शिक्षण व्यवस्था, विभागीय जांच तथा प्रशासन बारीकियों की गहन जानकारी थी, लेकिन अपनी कर्तव्य निष्ठा व ईमानदारी के कारण हमेशा सफल रहे।
अपनी राजकीय सेवा के समय प्रारम्भ से ही उनकी स्काउटिंग में रुचि रही। 1978 से ही स्काउट मास्टर के रूप में कार्य किया। स्काउटिंग में एडवांस कमिश्नर कोर्स उन्होंने पचमढ़ी मध्य प्रदेश से किया। वह धौलपुर जिले के एडवांस कमिश्नर कोर्स करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। खेलकूद में भी उनकी प्रारम्भ से ही रुचि रही तथा राज्य स्तर पर 6 बार उन्होंने जिले का प्रतिधिनित्व एक खिलाड़ी के रूप में किया था।
योगेन्द्र सिंह राना की योग में रुचि बचपन से ही थी। वर्ष 1983 84 में योग का एकवर्षीय विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद तो उन्होंने योग को अपने जीवन का अंग बना लिया। विद्यालय में भी उन्होंने छात्रों को योग की क्रियात्मक व सैद्धांतिक दोनों तरह की गहन शिक्षा दी। ना सिर्फ राष्ट्रीय दिवसों पर छात्रों द्वारा योग का सफलता पूर्वक प्रदर्शन करवाया गया, बल्कि एनएसएस शिविर में सुबह 4 बजे पहुंचकर छात्रों को आसन, प्राणायाम व शोधन क्रियाओं का अभ्यास कराते थे। एक बार एक छात्र द्वारा एक शिक्षक के साथ अनुचित व्यवहार करने पर जब राना ने उससे मार्मिक शब्दों में कहा कि बेटा तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी वह छात्र रो पड़ा। उसने ना सिर्फ उस अध्यापक से पैर पकडकऱ क्षमा मांगी बल्कि उस दिन से उसका जीवन ही बदल गया।
सेवानिवृति के बाद वह गौ सेवा के क्षेत्र में भी कार्य कर रहे है, राजाखेड़ा क्षेत्र के शैक्षिक विकास के लिए वह अब भी सतत प्रयत्नशील है। एक दानदाता के रूप में भी वह हमेशा आगे रहे है। ना सिर्फ उन्होने विद्यालय के लिए लोगों से दान प्राप्त किया, बल्कि आदर्श रूप में स्वयं के द्वारा अपनी वेतन की एक माह की राशि से भी अधिक दान में देकर कार्यक्रम की शुरुआत की थी। साथ ही वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर राजाखेड़ा में भी अभूतपूर्व निर्माण कार्य ना सिर्फ उनकी देखरेख में हुआ, बल्कि सबसे बड़े दानदाता के रूप में भी उन्होंने सहयोग दिया। जीवन के प्रारम्भ से ही वह आध्यात्मिक रुचि के व्यक्ति रहे है। अध्यात्म, धर्म व दर्शन की गहन समझ से ही उन्होंने कर्तव्य निष्ठा व ईमानदारी को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया है।
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