मचकुण्ड का शेर शिकार गुरूद्वारा; सिख गुरू ने तलवार के एक बार से किया था शेर का शिकार
धौलपुर. धौलपुर से गुजरने वाले आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग से तीन किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद में स्थित है, सुरम्य प्राकृतिक सरोवर तीर्थराज मचकुण्ड है। इसे पूर्वाचल का पुष्कर भी कहा जाता है। कुण्ड का सुरम्य स्वरूप व मन्दिरों का निर्माण 1856 में महाराजा भगवन्त सिंह जी के कार्यकाल की देन है।
धौलपुर•Apr 09, 2021 / 06:01 pm•
Naresh
मचकुण्ड का शेर शिकार गुरूद्वारा; सिख गुरू ने तलवार के एक बार से किया था शेर का शिकार
मचकुण्ड का शेर शिकार गुरूद्वारा; सिख गुरू ने तलवार के एक बार से किया था शेर का शिकार धौलपुर. धौलपुर से गुजरने वाले आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग से तीन किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद में स्थित है, सुरम्य प्राकृतिक सरोवर तीर्थराज मचकुण्ड है। इसे पूर्वाचल का पुष्कर भी कहा जाता है। कुण्ड का सुरम्य स्वरूप व मन्दिरों का निर्माण 1856 में महाराजा भगवन्त सिंह जी के कार्यकाल की देन है। यह स्थल मान्धता के पुत्र महाराज मुचुकुण्द और भगवान कृष्ण के जहां आगतन की गवाही दे रहा है। इसका उल्लेख विष्णु पुराण के पंचम अंश के 23वें अध्याय में व श्रीमद् भागवत के दशम स्कंद के 51वें अध्याय में मिलता हैं। मचकुण्ड के 108 मंदिरों के श्रृंखला में सभी मंदिरों का महत्व है। इन मंदिरों में शेर शिकार गुरूद्वारा भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मचकुण्ड सरोवर के किनारे पर सिक्ख धर्मावलम्बियों का धार्मिक स्थल है, जो शेर शिकार गुरूद्वारा के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि 4 मार्च 1612 को सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द सिंह ग्वालियर से जाते समय जहां ठहरे थे। उस समय मचकुण्ड के आसपास घना जंगल था। गुरू हरगोविन्द सिंह अपनी तलवार के एक ही वार से जहां शेर का शिकार किया था। इस लिए इस गरूद्वारे को शेर शिकार गुरूद्वारा कहा जाता है।
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