- झल्लूकाझोर व आसपास के पुरा-पट्टों का दर्द धौलपुर. एक्वा डी क्रिस्टालो ट्रिब्यूटो अ मोडिग्लिआनी को दुनिया का सबसे महंगा पानी माना जाता है। इस पानी की 750 मिली लीटर की बोतल की कीमत करीब 44 लाख रुपए है। दुनिया के चंद खरबपति इस पानी को पीते हैं, लेकिन, सरमथुरा के डांग क्षेत्र में बसे लोग इससे भी महंगा पानी पीने को मजबूर हैं। दरअसल, डांग के इन बाशिंदों के लिए पानी की कीमत जीवन से भी अधिक है। यहां बसे लोगों को चंद बंूदों के लिए अपनी जान हथेली पर रखनी पड़ती है। झल्लूकाझोर क्षेत्र में पानी की किल्लत के कारण यहां के बाशिंदों को मजबूरी में सेना के फायरिंग रेंज में बने जलस्रोतों से चोरी-छिपे पानी लाना पड़ता है।फायरिंग रेंज में है ‘झिन्ना’गर्मी शुरू होते ही डांग की पथरीली भूमि पर जलस्रोतों से पानी सूखने लग जाता है। यहां-वहां चंद जलस्रोतों के सहारे ही डांग के बाशिंदों को प्यास बुझानी होती है। हमेशा पानी देने वाले जलस्रोतों को स्थानीय भाषा में ‘झिन्ना’ कहा जाता है। डांग के झल्लूकाझोर और उसके आसपास बसे पुरा-पट्टों का झिन्ना सेना की फायरिंग रेंज में आता है। ऐसे में ग्रामीण सेना की फायरिंग रेंज से पानी लाकर पीने को मजबूर हैं। अनदेखी करते हैं चेतावनीसेना की ओर से फायरिंग रेंज के आसपास चेतावनी के नोटिस भी चस्पा कर रखे हैं। इनमें साफ लिखा है कि 14 से 30 अप्रेल तक सेना की तोप की फायरिंग है। सेना ने लोगों से अपील की है कि वे रेंज की ओर न जाएं और न ही पशुओं को जाने दें। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। सेना की ओर से गांव में भी लोगों को सावचेत करने के लिए दो आदमी लगा रखे हैं। इस सब के बावजूद झल्लूकाझोर और आसपास के ग्रामीण जान की परवाह किए बिना झिन्ना से पानी लाने रेंज में आते-जाते रहते हैं।इन दिनों चल रहा फायरिंग अभ्यासरेंज में इन दिनों फायरिंग का अभ्यास जारी है। दूर से ही धमाकों की गूंज सुनाई देती है। इसके बावजूद पानी की किल्लत झेल रहे लोग रेंज में जाने को मजबूर हैं। असापास कहीं और साफ पानी का स्रोत नहीं होने से ग्रामीणों को जान की परवाह नहीं करते हुए फायरिंग रेंज में जाने को मजबूर होना पड़ता है।