धौलपुर

जिस गांव में था डकैतों का आतंक, खनकती थी बंदूके, आज उसी गांव के युवा पा रहे हैं सरकारी नौकरियां

स्थिति यह थी कि दिनभर गांव सुना पड़ा रहता था। गांव में पुलिस की बार-बार दबिश और आने-जाने से प्रत्येक बच्चा, महिला-पुरुष हर कोई परेशान और भयभीत था…

धौलपुरFeb 20, 2019 / 05:27 pm

dinesh

– चंद्र प्रकाश कौशिक
धौलपुर/बसेड़ी।

धौलपुर जिले की बसेड़ी पंचायत समिति में एक ऐसा गांव है जिसे डकैतों के आतंक और उनके जुल्मों की कहानी के नाम से ही जाना जाता है। गांव झील में कभी बंदूकों की आवाज खन-खनाया करती थी। आज उसी गांव के युवाओं ने अखर ज्योत जलाते हुए सरकारी सेवाओं में जाना शुरू कर दिया है। जिससे गांव में न केवल खुशियां है बल्कि एक बदलाव की किरण भी नजर आने लगी है।
जानकारी के अनुसार वर्ष 1992 में डकैत गोपाल काछी उसका सगा भाई विजेंदर पुत्र शिवचरण पार्वती के बीहड़ का रास्ता चुना। देखते ही देखते गांव के कई युवा साबू कुशवाह, छत्तर कुशवाहा, कमल सिंह, दीनदयाल, राजकुमार सहित आधा दर्जन से अधिक खूंखार इनामी डकैत रहे। स्थिति यह थी कि दिनभर गांव सुना पड़ा रहता था। गांव में पुलिस की बार-बार दबिश और आने-जाने से प्रत्येक बच्चा, महिला-पुरुष हर कोई परेशान और भयभीत था। देखते देखते समय बदला कुछ डकैत एनकाउंटर में मारे गए। कुछ जेल में है तो कुछ मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
खास बात तो यह है कि वर्ष 2019 गांव के युवाओं के लिए रंग लेकर आई और गांव के चार युवा सरकारी नौकरी में पहुंचे हैं इससे गांव में खुशियों का माहौल है। इससे गांव में बदलाव की एक किरण दिखाई देने लगी है। अंजु के अनुसार गांव में एक बदलाव के साथ प्रेरणा की चमक नजर आने लगी है।
इनको मिली सरकारी नौकरी
एक ही घर से दो सगे भाई माधव सिंह टीचर बने। प्रदुमन सिंह को आर्मी में क्लर्क के पद पर जिम्मेदारी मिली। तो राजू पुत्र महेश देश सेवा के लिए आर्मी में भर्ती हो गया। इसके अलावा योगेश की कम्युनिटी हेल्थ ऑफीसर, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश में नौकरी लगी है।
इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर में भी सिविल इंजीनियर पुष्पेंद्र सिंह, नोएडा दिल्ली में रुस्तम सिंह पुणे में, वहीं गांव के राज कुमार डालचंद नौकरी की दौड़ में है। रेलवे टेक्नीशियन की प्री परीक्षा पास कर ली है। गांव का एक युवक पीतम सिंह कुशवाह जूडो-कराटे चैंपियन भी है। जिसने राज्य स्तर तथा नेशनल स्तर पर भी प्रदर्शन कर मेडल प्राप्त किए हैं।
1988 में बना पहला शिक्षक
गांव में कोई व्यक्ति सरकारी सेवा में नहीं था। अजमेर सिंह 1988 में शिक्षक बना उस दौरान गांव में आधा दर्जन से अधिक डकैत बने और उनका आतंक था, लेकिन आज गांव के कई लडक़े सरकारी नौकरी में पहुंचे हैं। कुछ दौड़ में है। इससे गांव में एक बदलाव की स्थिति नजर आ रही है। गांव में इसकी काफी खुशियां मनाई जा रही है।
गांव बना पंचायत मुख्यालय
2015 में परिसीमन के दौरान गांव झील को पंचायत मुख्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। गांव में 1995 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय खुला जो वर्ष 2005 में उच्च प्राथमिक विद्यालय 2013 में माध्यमिक 2017 में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में तब्दील हो गया।
आज भी पड़ा है खुले में सामान
गांव में डकैतों का आतंक, रोजी रोटी का संकट, हर स्थिति से परेशान आर्मी में भर्ती हुए राजू का मकान अभी भी कच्चा है। सामान भी खुले में बिखरा पड़ा है। पिता महेश से बात करने पर उसने बताया कि वह खान में मजदूरी करता है। पत्नी नरेगा में काम करती है बड़ी मुश्किल से पेट काट काट कर बच्चे को पढ़ाया और देश की सेवा के लिए आर्मी में भेज दिया है। इसके अलावा तीन भाई और है।
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