डेली न्यूज नेटवर्क। रोग से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा असरकारी है। इस थेरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरॉयड सांस की नलियों में जाता है। सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरॉयड की ही जरूरत होती है, लेकिन ओरल दवाओं के जरिए 10 हजार माइक्रोग्राम शरीर में चली जाती है।
अस्थमा रोगी टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है। ये दवाएं पहले रक्त में घुल कर फेफड़े तक पहुंचती हैं, लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरॉयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है। खानपान में भी बदलाव करके अस्थमा के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड
ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, ट्यूना, ट्राउट जैसी मछलियों में एवं मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड केवल हमारे फेफड़ों के लिए भी लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है।
फोलिक एसिड
पालक, ब्रोकोली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तबदील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है।
विटामिन सी
संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबेरी, अंगूर, अनानास व आम में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं।
लहसुन
लहसुन में मौजूद एल्लिसिन तत्व होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।
बेरी
ब्लूबेरी, रास्पबेरी व ब्लैकबेरी में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं। कैरोटीनॉयड एंटीऑक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है। फेफड़ों की कैरोटीनॉयड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।