खाद्य तेल का हाइड्रोजनीकरण करके वनस्पति तेल बनाया जाता है। इसे डालडा भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में तेल को गाढ़ा करने के लिए हाइड्रोजन मिलाया जाता है। डेनमार्क सबसे आगे
डेनमार्क ने सबसे पहले ट्रांस फैट पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद 2006 में न्यूयॉर्क सिटी ने भी।भारत में हुई रिसर्च के अनुसार अधिक आय वाले ट्रांस फैट फूड ज्यादा खाते हैं। 80 फीसदी ट्रांस फैट स्ट्रीट फूड से आता है। भारत में हर साल 4 लाख टन स्नेक्स खाया जाता है, जिनमें ट्रांस फैट होता है।
– शरीर में अच्छा कोलेस्ट्रोल कम करके बुरे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है।
– रक्त धमनियों को अवरुद्ध और इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है।
– अमरीकन हार्ट एसोसएिशन के मुताबिक रोजाना की कैलोरी में सैचुरेटेड फैट का हिस्सा 7 और ट्रांस फैट का 1 प्रतिशत होना चाहिए। इससे हर साल 30 हजार असामयिक मृत्यु होती हैं।
– यदि एक आदमी रोजाना 3 फीसदी ऊर्जा ट्रांस फैट से लेता है, तो उसे हृदय रोग होने की आशंका 50 प्रतिशत बढ़ती है।
भारतीय बाजार के अधिकांश खाद्य पदार्थों में तय मानक से कहीं ज्यादा ट्रांस फैट है। दिल्ली के एक एनजीओ की रिसर्च में पता चला कि आलू भुजिया और नूडल्स के एक उत्पाद ने खुद को ट्रांस फैट फ्री कहा, जो झूठ निकला। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक, जिस उत्पाद की हर सर्विंग में 0.2 ग्राम से कम ट्रांस फैट होता है, वही ट्रांस फैट फ्री है, जबकि 100 ग्राम आलू भुजिया में 2.5 और नूडल्स के एक पैकेट में 0.6 ट्रांस फैट था। इतना ही नहीं तय मानक के अंदर आने के लिए कंपनी ने अपना सर्विंग साइज कम कर दिया, हालांकि उपभोक्ता उससे कहीं ज्यादा खा लेता है। उदाहरण के तौर पर एक स्नेक्स कंपनी ने अपना १४ ग्राम का पैकेट निकाला, जिसमें 5-6 चिप्स थे।
– बाहर के स्नेक्स कम खाएं।
– वनस्पति घी इस्तेमाल न करें।
– सूरजमुखी के बीज का तेल, कुसुम्बी का तेल और मूंगफली का तेल खाएं। सरसों और राई का तेल भी अच्छा होता है।
– बाजार की चीजें खाने से पहले लेबल जरूर पढ़ लें। उन चीजों को खरीदें, जिनमें ट्रांस फैट कम हो।
अमरीका के ‘नेशनल कोलेस्ट्रोल एजूकेशन प्रोग्राम’ के मुताबिक रोज के खाने में 20 प्रतिशत मोनोअनसैचुरेटेड और 10 प्रतिशत पॉलीअनसैचुरेटेड फैट होना चाहिए। मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स सूरजमुखी व मूंगफली तेल, कद्दू के बीज, बादाम, काजू में होता है। जबकि पॉलीअनसैचुरेटेड फैट अखरोट, अलसी के तेल व ट्यूना मछलियों में।