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जानें हमारे खानपान से जुड़ी कुछ भ्रांतियां और सच्चाइयां

locationजयपुरPublished: Feb 18, 2019 06:19:43 pm

खानपान से जुड़ी इतनी भ्रांतियां हैं कि हम कई बीमारियों को जानबूझकर गले लगा रहे हैं। आयुर्वेद के माध्यम से जानें इससे जुड़ी सच्चाई –

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खानपान से जुड़ी इतनी भ्रांतियां हैं कि हम कई बीमारियों को जानबूझकर गले लगा रहे हैं। आयुर्वेद के माध्यम से जानें इससे जुड़ी सच्चाई –

हमारी शारीरिक फिटनेस खानपान और रहन-सहन की आदतों पर निर्भर करती है। क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, जीवनशैली और दिनचर्या क्या है, इसका असर हमारी सेहत पर पड़ता है। लेकिन खानपान से जुड़ी इतनी भ्रांतियां हैं कि हम कई बीमारियों को जानबूझकर गले लगा रहे हैं। आयुर्वेद के माध्यम से जानें इससे जुड़ी सच्चाई –

शेक में दूध का उपयोग –
हम अक्सर आम या केले से बना शेक पीना पसंद करते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार दूध के साथ आम, केला, नारियल, बेर, अखरोट, अनार, कटहल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसे विरुद्ध आहार कहा गया है। इन्हें खाने से बेहोशी, आफरा, जलोदर यानी पेट में पानी भर जाना, खून की कमी (एनीमिया), कुष्ठ, बुखार, कमजोरी, पुराना जुकाम, नपुंसकता व अंधापन जैसी समस्या हो सकती हैं।

ज्यादा पानी पीने से शरीर की सफाई –
आयुर्वेद के अनुसार केवल गर्मी का मौसम ही एक ऐसा मौसम है, जिसमें इच्छानुसार पानी पीया जा सकता है जबकि अन्य ऋतुओं में अधिक पानी पीना मना है। जिस व्यक्ति के खून में खराबी हो, शरीर में जलन होती हो, किसी जहरीली वस्तु या शराब का प्रयोग किया हो तो ठंडे पानी का ही उपयोग करना बेहतर माना गया है। पुराना जुकाम, पेट संबंधी बीमारियां, सूजन और बवासीर की समस्या में पानी कम पीने की सलाह दी जाती है।

खाने में हरी सब्जियां –
आमतौर पर लोगों को शरीर में आयरन की पूर्ती के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां खानी चाहिए। लेकिन पश्चिमी देश के लोगों का प्रमुख भोजन मांस व ब्रेड होता है, जिनमें रेशे की कमी होती है। ऐसे में वहां के लोगों के लिए इनसे मिलने वाले पोषक तत्वों के अलावा हरी सब्जियां खानी जरूरी होती है। सब्जियों के साथ-साथ फाइबर यानी रेशे से भरपूर चीजें जैसे फल, दालें, सूखे मेवे व गेहूं से बनीं चीजें आदि भोजन में शामिल करें।

भोजन के बाद पानी और मिठाई लेना –
खाने से पहले पानी पीना शरीर को पतला बनाता है जबकि बाद में पीने से मोटा। भोजन करते समय मीठा सबसे पहले, उसके बाद खट्टी और नमकीन चीजें खाएं। इससे भोजन आसानी से पचता है।

रात का खाना हल्का व सुबह का भारी –
नाश्ता भारी और डिनर बहुत ही हल्का होना चाहिए क्योंकि सुबह के समय शरीर को दिनभर के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। वहीं रात को भारी भोजन करने से पेट में गड़बड़ी हो सकती है।

 

लेट उठना व रात को देर से सोना –

बहुत से लोग रात को देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं। देर से उठने का अर्थ है कि कई रोगों को निमंत्रण देना। रात को देर से सोने से वात का प्रकोप हो जाता है और सुबह जल्दी न उठने से बहुत से रोग व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से कई रोग अपने आप शांत हो जाते हैं। अथर्ववेद में भी लिखा है कि प्रात:काल में सूर्य की रोशनी बीमारियों को हर लेती हैं।

ठंडा पानी नुकसानदायी –
पानी गर्म करके पीने से वह डेढ़ घंटे में पचता है। उसी पानी को गर्म करके ठंडा करने के बाद पीया जाए तो वह तीन घंटे में पचता है जबकि ताजा पानी को पचने में छह घंटे लग जाते हैं। ज्यादा ठंडा पानी पचने में और अधिक समय लेता है। इसके अलावा हिचकी आनेे, खांसी-जुकाम, दमा, बुखार और गले के रोगों में गर्म पानी ही पीना चाहिए।

 

दही का मौसम –
बहुत से लोग सोचते हैं कि दही रोज खाने से सेहतमंद रहते हैं। जबकि आयुर्वेद में कहा गया है कि साल में छह माह दही नहीं खाना चाहिए। केवल बारिश और गर्मी के मौसम में ही दही का प्रयोग अच्छा माना गया है। किसी भी ऋतु में रात के समय दही नहीं खाना चाहिए। इससे बुखार, नकसीर आना, कुष्ठ रोग, चक्कर आना और पीलिया जैसे रोग होते हैं।

 

दूध के साथ नमकीन –
आयुर्वेद में दूध के साथ नमक नहीं खाना चाहिए। दूध के साथ परांठा, नमकीन और बिस्किट जैसी चीजें न खाएं। दरअसल कई नमकीन चीजों को बनाने के लिए मीठे सोडे का प्रयोग होता है, जो बाल और आंखों के लिए नुकसानदायी है। आयुर्वेद के अनुसार मीठे सोडे से पौरुष क्षमता कम होती है।

खाने का अनिश्चित समय –
आजकल ज्यादातर लोग समय पर भोजन नहीं करते। लगातार यही आदत बनी रहने से पाचनक्रिया गड़बड़ा जाती है और धीरे-धीरे स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। जरूरी है कि नाश्ता, लंच और डिनर सभी के लिए एक निश्चित समय हो। इसके अलावा जब तक सुबह का किया भोजन पच न जाए और भूख न लगे तब तक फिर से भोजन न करें। आयुर्वेद के अनुसार कन्द में सबसे खराब आलू है और सबसे बढिय़ा अदरक है। इसी तरह सरसों के साग को आयुर्वेद में अच्छा नहीं माना गया है क्योंकि पचने में भारी होता है और कब्ज व पेशाब की जलन को बढ़ाता है। इसकी जगह चौलाई का साग बेहतर होता है।

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