किडनी का काम
यह अपशिष्ट तरल पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने व रक्त को साफ करने का काम करती है। किडनी की नेफ्रॉन बाहर निकलने वाले फ्लूड में से उपयोगी सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम आदि सोख लेती है। शेष अपशिष्ट यूरिन के रूप में बाहर निकल जाता है। यह रक्त में पानी, नमक और मिनरल्स की मात्रा संतुलित रखती है जिससे बीपी भी नियंत्रित रहता है।
किडनी संबंधी विभिन्न रोग
पायलोनेफ्रिटिस यानी किडनी में इंफेक्शन। इसकी वजह किडनी में स्टोन है। जब स्टोन यूरिन के प्रवाह में बाधा बनता है तो यूरिन किडनी में वापस लौटने लगती है। इसके अलावा किडनी या यूरीनरी टे्रकमें ई-कोली बैक्टीरिया के कारण भी संक्रमण होता है।
ग्लोमेरूलोनेफ्रिटिस : इससे आशय है किडनी की फिल्टरिंग इकाइयों में सूजन। यह आम किडनी रोग है जिसका समय से उपचार न किया जाए तो यह किडनी की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त कर देता है।
क्रॉनिक किडनी डिजीज: किडनी सामान्य काम न करे तो उसे क्रॉनिक किडनी डिजीज(सीकेडी) या किडनी फेल्योर कहते हैं। पहली स्टेज में यदि रोग का पता चले तो दवाओं से इलाज संभव है।
एंड स्टेज रीनल डिजीज: किडनी फेल्योर की वह स्टेज जिसमें दोनों गुर्दे सिर्फ 15 फीसदी ही काम कर रहे हों। इसमें भी जीवित बने रहने के लिए इलाज के रूप में डायलसिस व प्रत्यारोपण ही विकल्प हंै।
कारण व निवारण
स्टोन, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, प्रोस्टेट रोग आदि में ली जाने वाली दर्दनिवारक दवाओं के अधिक इस्तेमाल से ये रोग हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए ताजे फल-सब्जी व कम वसा वाले पदार्थ खाएं। धूम्रपान व शराब से दूर रहें। नियमित व्यायाम करें। खाने में नमक कम लें। वजन नियंत्रित रखें और अधिक मात्रा में पानी पिएं।
बढ़ रहे मरीज
देश में प्रत्येक दो हजार परिवार में से एक व्यक्ति किडनी रोग से पीडि़त है। करीब 5 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी किडनी पूरी तरह खराब है और ये डायलिसिस उपचार से जीवित हैं। डायलिसिस में शरीर से अतिरिक्त तरल बाहर निकालकर इलेक्ट्रोलाइट संतुलित किया जाता है। हीमोडालिसिस में कृत्रिम किडनी द्वारा मशीन से रक्त साफ होता है।