रॉयल्टी में सेंधमारी कर शासन को लगाया करोङ़ो का चूना
डिंडोरीPublished: Oct 18, 2019 10:14:49 pm
कार्रवाई के नाम की जा रही औपचारिकता
Breaking royalty and imposing governance lime
डिंडोरी. विभागीय अधिकारियों की चुप्पी व संदिग्ध कार्यप्रणाली के चलते जिले की दीवारी रेत खदान एक बार फिर विवादों में है। यहां रॉयल्टी के नाम पर शासन को चुना लगाया जा रहा है। जिसमे कारोबारी द्वारा ट्रक, डफर, ट्रेक्टर वाहनों में रेत तो पूरी भरी जा रही है, लेकिन उक्त वाहनों में रेत का घनत्व कम दर्शाया जा रहा है। जिससे रॉयल्टी के नाम पर दो गुनी कमाई की जा सके। रॉयल्टी के नाम पर धोखाधड़ी का यह खेल वर्षों से चला आ रहा है। जिसमे हांथ डालने की जहमत आज तक किसी ने नहीं उठाई।
मुख्यालय भी पहुंचते हैं वाहन
रेत के अवैध उत्खनन व परिवहन में लगे सैंकड़ों वाहन हर रोज मुख्यालय पहुंचते हैं। जिनकी यदि बारीकी से जांच की जाए तो खनन कारोबारियों के कारनामे उजागर होने में देर नहीं लगेगी। विभागीय अमले के पास इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वह इस ओर नजरें इनायत करें। जानकारों की माने तो रेत के अवैध कारोबार में लगे सैकड़ों वाहन रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचते है ।
आम आदमी पर महंगाई की मार
रेत के फलते फूलते कारोबार से सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी को है। दरअसल ठेकेदार द्वारा ट्रेक्टर से 2000 रुपये प्रति ट्राली, 709 से 3500 रुपये और डंपर से 6000 रुपये प्रति डंपर की वसूली की जा रही है। बाजार तक पहुंचते-पहुंचते रेत की कीमत, वाहनों की मरम्मत और डीजल, ड्राइवर के भाड़े के साथ वाहन स्वामी के मुनाफा सहित रेत की कीमत दो से ढाई गुना तक हो जाती है।
कलेक्टर से शिकायत
बताया जा रहा है कि उक्त खदान में ठेकेदार की मनमानी की शिकायत पार्टी विशेष के जन प्रतिनिधि ने भी कलेक्टर से की है। जिसमें ठेकेदार पर पूर्व में लगाये गये जुर्माने 1 करोड़ सत्रह लाख का जिक्र कर मामले की जांच किए जाने की मांग की है।
सबकी मौन स्वीकृति
राज्य सरकार के द्वारा दिए गए सालाना लक्ष्य की भरपाई और स्वस्वार्थ की भरपाई को लेकर विभागीय अमले को लगातार हो रहे खनिज संपदा की ओर ध्यान नहीं जा रहा है। जिसके चलते खनन कारोबारी बेखौफ हो जिले की खनन संपदा का अवैध रूप से दोहन कर तगड़ा मुनाफा कमा रहे हैं। बड़े-बड़े कारोबारी क्षेत्र में रेत के इस कारोबार में लिप्त है। जिसकी जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही जन प्रतिनिधियों को भी है। इसके बाद भी इन पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो रही है।