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बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन

locationडिंडोरीPublished: Aug 18, 2019 11:14:47 pm

Submitted by:

ayazuddin siddiqui

निजी शिक्षण संस्थानों पर नहीं कसी नकेल

Childhood is burdened with bags

बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन

डिंडोरी. जिले में राज्य सरकार और म. प्र. बाल अधिकार संरक्षण आयोग के दिशा निर्देश को तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी चरम पर है। जिले में नया सत्र प्रारंभ होते ही निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी प्रारंभ हो गई थी लेकिनजिम्मेदारों ने इस ओर ध्यान देना उचित नही समझा। नतीजतन इसका खामियाजा नौनिहालों के संग अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है। शासन के यह नियम निर्देश सिर्फ निजी शिक्षण संस्थानों के लिये नहीं थे बल्कि यह सभी शासकीय और अशासकीय संस्थाओं के सांथ शासन से अनुदान प्राप्त संस्थानों के लिये भी जारी किए गए थे।
जारी है मनमानी
निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी अभी भी जारी है। जिसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि जिम्मेदार विभाग इनकी मनमानी पर अंकुश लगाने कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। इन्होंने निजी शिक्षण संस्थानों को खुली छूट दे रखी है। जिसका निजी स्कूल संचालक भरपूर फायदा उठा रहे है। जिसका खामियाजा नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है। मुख्यालय स्थित निजी शिक्षण संस्थानों में जाकर देखा जा सकता है जहां शासन के नियम निर्देशो से परे स्कूलों का संचालन हो रहा है। इसके अलावा जिले में ऐसे भी संस्थान है जिन्होंने खुलेआम शिक्षा को व्यवसाय का जरिया बना लिया है और खुलेआम शिक्षा व्यवस्था का माखौल उड़ा रहे हैं।
बस्ते का कम नहीं हुआ बोझ
जिले में संचालित सभी निजी स्कूल आर टी ई के नियम निर्देशो से परे आज भी निजी प्रकाशकों की किताबों से पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के नियमानुसार नर्सरी से कक्षा आठ तक एमपीईआरटी की किताबो से पढ़ाये जाने का प्रावधान है। आलम यह है कि मुख्यालय स्थित स्कूलों में जबरिया थमाई किताबो से बस्ते के बोझ तले बचपन को रौंदा जा रहा है। जबकि मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्कूलों में बच्चों के बैग का वजन निर्धारित कर रखा है। बावजूद इसके जिले मे बेलगाम हो चुके स्कूल संचालकों पर प्रशासन ने कोई नकेल नहीं कसी है।
इनका कहना है
आज अवकाश का दिन है इसलिए मुझे परेशान न करें।
राघवेंद्र मिश्रा, प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी
बच्चों की बढ़ती उम्र के चलते बस्ते के अत्यधिक बोझ से रीढ़ की हड्डी पर जोर पड़ता है। जिसके दूरगामी परिणाम भयावह हो सकते है।
डा. आर के मेहरा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी

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