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दीपावली पर पुस्तैनी कारोबार लौटने की उम्मीद, तेज हुई कुम्हार के चाक की रफ्तार

locationडिंडोरीPublished: Oct 19, 2021 12:30:40 pm

Submitted by:

shubham singh

लोगों के घर आंगन को रोशन करेंगे मिट्टी के दीये

Expected to return to ancestral business on Diwali, speed of potter's wheel increased

Expected to return to ancestral business on Diwali, speed of potter’s wheel increased

शहपुरा. चाइनीज सामानों पर प्रतिबंध लगने से इस बार दीपावली को लेकर कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। ग्रामीण अंचल में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि अब उनका पुस्तैनी कारोबार फिर से लौट आएगा। दीपावली पर इस बार लोगों के घर आंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे। बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंच गए हैं। लोगों ने दीयों की खरीदारी भी शुरू कर दी है। गांव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहां पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गांव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा। पिछले कुछ वर्षों में आधुनिकता भरी जीवनशैली के दौर में चाइनीज सामानों ने इस कला को बहुत पीछे धकेल दिया था। पिछले दो वर्षों से खासा बदलाव आया और एक बार फिर गांव की लुप्त होती इस कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दियाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए। शहपुरा विकास खंड क्षेत्र के आज भी कुम्हार मिट्टी के दीये के साथ ही बच्चों के खिलौने आदि बनाते हैं।
रोजगार का जरिया बनेगी पुस्तैनी कला
गांव के कुम्हार समाज के युवाओं का कहना है कि लोगों की बदली सोच से लग रहा है कि हम नव युवकों के लिए हमारा पुश्तैनी कुम्हारी कला व्यवसाय एक बार फिर रोजगार का जरिया बनेगा। सरकार कुछ आर्थिक सहयोग के साथ तकनीकी तौर पर बिजली से चलने वाला चाक तथा मिट्टी खनन की समुचित व्यवस्था मुहैया कराए। गांव के कई लोग दिवाली के लिए दीये बनाने का ऑर्डर दे चुके हैं। इस समय दिन-रात मिट्टी के दीये व खिलौने बनाने का काम चल रहा है।
ईको फ्रेंडली होते है मिट्टी के सामान
मिट्टी से निर्मित मूर्तियां, दीये व खिलौने पूरी तरह इको फ्रेंडली होते है। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। इको फ्रेंडली दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पिपरिया गांव के कुम्हार दुर्गेश ने बताया कि दो-तीन साल पहले हमारा यह पैतृक व्यवसाय खत्म सा हो गया था लेकिन अब लोग फिर मिट्टी के सामान को प्रमुखता दे रहे हैं। लोग का विदेशी सामानों से मोह भंग हो रहा है।
चाइनीज झालरों ने ले ली थी जगह
उल्लेखनीय है कि चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। दो तीन सालों से स्वयंसेवी संस्थाओं के जागरूकता अभियान से लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है। मिट्टी की दियाली व बच्चों के खिलौने अब फिर से गांवों व बाजारों तक में दिखने लगे हैं। मिट्टी से निर्मित होने वाले बर्तनों का उपयोग शुरू होने से पर्यावरण भी सुरक्षित हो रहा है। प्रकाश पर्व दीपावली की तैयारी के लिए अभी से मिट्टी के दीये गढऩे लगी हैं।

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