डिंडोरीPublished: Jul 13, 2019 10:25:50 pm
Rajkumar yadav
एक गांव ऐसा भी जहंा युवा बच्चे ,बुर्जर्ग सभी चित्रकार
Here the child is from the elderly to master the painting
डिंडौरी. जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां एक,दो नहीं बल्कि सैंकड़ों की तादात में चित्रकार रहते हैं,हम बात कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार जनगण श्याम के गृहग्राम पाटनगढ़ की। जहां गांव के तमाम बच्चे,युवा, महिलाएं और बुजुर्ग चित्रकारी की कला में जलवा बिखेर रहे हैं। दिवंगत जनगण श्याम की प्रेरणा से गांव के लोगों ने चित्रकारी की कला को सीखा था जो अब उनकी कमाई का जरिया बन गया है। गांव के तमाम लोग इस कला में इतने पारंगत हो चुके हैं कि केनवास, दीवार, कपडे, मिट्टी आदि में जीवंत चित्र बना देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय गोंडी चित्रकार जनगण श्याम का जन्म पाटनगढ़ के एक गरीब परिवार में हुआ था। आर्थिक तंगी के चलते वो शिक्षित नहीं हो पाये लेकिन उन्होंने अपनी चित्रकारिता से देश विदेश में आदिवासी संस्कृति को एक अलग पहचान दिलाने का काम किया। स्वर्गीय जनगण श्याम को चित्रकारी के क्षेत्र में जापान, साउथ अफ्रीका व पेरिस में भी सम्मानित किया जा चुका है। जनगण श्याम का निधन जापान में तीन जुलाई 2001 में रहस्मयी तरीके से हुआ था और आजतक उनकी मौत के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। आज इस गांव के कई चित्रकार भोपाल के मानव संग्रहालय में अपनी कला को लेकर प्रसिद्ध है।
पाटनगढ़ गांव में अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार स्वर्गीय जनगण श्याम का जन्मदिन ग्राम वासियों द्धारा बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। जनगण श्याम को गांव के लोग अपना आदर्श मानते हैं और उनकी प्रेरणा से ही आज गांव के तमाम लोग कुशल और दक्ष चित्रकार बन गये हैं। इस गांव की आबादी करीब 1000 है। जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक लोग चित्रकारी के काम में जुटे हुए हैं। वर्षभर में यहां एक हजार से अधिक चित्र बनाए जाते हैं। प्रकृति के साथ आदिवासी देवी देवताओं, पशुओं, आदिवासी परंपराओं, प्राकृतिक वातावरण, जंगली जानवरों का चित्रण पेटिंग में होता है। आदिवासी कथाओं और परंपराओं का चित्रण भी पेटिंग में किया जाता है। पेटिंग की चित्रकारी पेपर सीट के साथ कैनवास पर की जाती है। पाटनगढ़ के जो कलाकार भोपाल में बस गए हैं वे यहां की पेटिंग भोपाल तक ले जाते हैं। प्रदर्शनी लगाते हैं, यहां विदेशी आकर्षक पेटिंग क्रय करते हैं। विदेशों में भी प्रदर्शनी लगाई जाती है। यहां तीन समूह भी सक्रिय है, जो पेटिंग करने के साथ लोगों को इसके लिए प्रेरित भी करते हैं। गोंडी चित्रकारिता की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि इसमें रेखाओं और बिन्दुओं का पूरा कमाल होता है। पूरी पेटिंग बिन्दू और रेखा पर ही आधारित होती है। गोंडी पेटिंग कल्पना में परंपरा का गहरा बोध भी कराती है। हर चित्र के पीछे आदिवासी कहानी या परंपरा छिपी होती है। संगीत का चित्र में रूपांतरण भी साफ दिखाई देता है। गोंडी पेटिंग फोटो जनित न होकर कल्पना की होती है। इसमें प्रकृति के साथ आदिवासियों का कैसा जुड़ाव है यह चित्रण किया जाता है। स्थानीय चित्रकारों की मानें तो वो अपनी इस कला के जरिए महीने में कभी 20 से 30 हजार रूपये तक कमा लेते हैं। वहीं इस पूरे मामले में जब स्थानीय विधायक व प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमकार मरकाम ने अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार स्वर्गीय जनगण श्याम की उपलब्धियों को जिले की शान बताने के साथ पाटनगढ़ के रहवासी चित्रकारों की जमकर तारीफ़ की साथ ही आदिवासी संस्कृति को सहेजने 10 करोड़ की लागत से संस्कृति भवन बनाने की बात कही है।
इनका कहना है
हमारे यहां की चित्रकारी प्रदेश व देश में ही नहीं वरन विदेश में भी मशहूर है।
हीरो बाई चित्रकार