यहां अजब है होली का रंग, रंगों के बीच गुड़ की पोटली पाने की होड़, 50 साल पुरानी है परंपरा
डिंडोरीPublished: Mar 21, 2019 02:26:37 pm
50 सालों से चली आ रही है परंपरा, नशामुक्ति से जोड़ती है यह परंपरा, होली पर मस्ती के अनूठे रंग में रंगता है धनवासी गांव, यहां मनाई जाती है परिया तोडन होली
Holi’s 50-year-old tribe tradition in dindori mp
डिंडौरी। रंगों के त्योहार होली में चारों ओर मस्ती और रंग गुलाल का बेहतरीन उदाहरण डिंडौरी के धनवासी गांव में देखने को मिलेगा। यहां होली की मस्ती में चार चांद लग जाते हैं। इसका कारण है कि यहां पर अनोखे ढंग से होली के त्यौहार को मनाया जाता है। यहां मनाई जाने वाली होली को देखने के लिए अब आसपास के इलाके के लोग भी इक_ा होने लगे हैं। यहां एक लकडी को चिकना कर दिया जाता है और इसमें जले हुए तेल को लगाकर इसकी चिकनाई और भी बढा दी जाती है। जिसके बाद शुरू होती है होली की मस्ती, और इस चिकने खम्बे में बारी बारी महिला पुरूष चढते हैं और लकड़ी के ऊपरी हिस्से पर बंधी गुड़ की पोटली निकालने का प्रयास करते हैं। इस दौरान दूसरा पक्ष रंग गुलाल डालकर लकड़ी में चढऩे से रोकता है। गांव में इस तरह होली का एक अलग ही रंग आनंद का रंग देखने को मिलता है।
लकड़ी का खंभा, गुड़ की पोटली और चिकनी लकड़ी
धनवासी गांव के चौक पर फाग की मण्डली मस्ती में फाग की धुनों पर थिरकती है। एक ओर पुरूष अपनी मण्डली के साथ फाग का आनंद लेते हैं तो दूसरी ओर महिलाओं पर भी फागुन रंग चढा दिखाई देता है। इस बीच होली के एक और रंग की तैयारी यहां पर की जाती है वह है मस्ती का रंग, आनंद और उल्लास का रंग, यहां पर लकडी का एक खंबा गड़ाया जाता है और उसके ऊपर गुड की दो थैलियां लटका दी जाती हैं। लकड़ी को जले आईल से चिकना कर दिया जाता है। इसके बाद शुरू होती है मस्ती की होली, यहां महिला और पुरूष अलग अलग टोलियों में इस पर चढ गुड की थैलियों को निकालने का प्रयास करेंगे दूसरा पक्ष उन्हें रोकने का प्रयास करता है। पूरी प्रक्रिया में चारों ओर सिर्फ मस्ती के रंग देखने को मिलते हैं।
युवा वर्ग को नशे से दूर करती है यह परंपरा
गांव के बुजुर्गों की मानें तो यह त्यौहार को सामूहिक रूप में मनाने के लिये आयोजन किया जाता है जो लगभग पिछले पचास सालों से चला आ रहा है। होली के इस अनूठे रंग में सराबोर होने के लिये अब आसपास के गांव के लोग भी यहां पर इक_ा होने लगे हैं धुरेडी के दूसरे दिन यहां पर इस तरह का अनूठा आयोजन किया जाता है। ग्रामीणों के अनुसार होली में नशे का प्रचलन अधिक है लेकिन इस तरह एक परंपरा विकसित हो जाने से अब यहां पर युवा वर्ग इन आयोजनों में शामिल होने के लिये आ जाता है और नशे की लत से भी दूर रहता है। इसके अलावा महिला और पुरूषों को समान रूप से अवसर दिया जाता है ताकि महिलायें भी अपने आपको किसी तरह से कम न समझें।
महिलाओं की भी बेहतर भागीदारी
पिछले कुछ सालों से इस अनूठे आयोजन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली युवती को काफी खुशी है कि वह पुरूषों से मुकाबला कर पाती है। साथ ही गांव की होली में उन्हें पूरा आनंद मिलता है। अन्य गावों में जहां महिलाओं का होली में निकलना दूभर होता है। वहीं इस गांव में महिलायें पुरूषों से मुकाबला करती हैं और साबित करती हैं कि किसी भी मायने वे पुरूषों से कम नहीं हैं बल्कि लगातार आयोजन में जीतने वाली युवती तो खुद को पुरूषों से बेहतर मानती हैं। शहरी इलाकों में आज जहां त्यौहारों को मनाने की परंपरा मात्र औपचारिक रह गई है वहीं धनवासी जैसे गांवों में आज भी इन त्यौहारों की प्रासंगिकता बनी हुई है इतना ही नहीं यहां होली समाज को नया संदेश देती है नशामुक्ति, आपसी भाईचारा व महिला पुरूष की समानता का सदेश। त्यौहार के मूल का सदेश। धनवासी गांव की होली में देखने को मिलता है जहां हर साल इस तरह मस्ती के रंग देखने को मिल जाते हैं।