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सोशल डिस्टेंस के साथ विवाह के बंधन में बंध रहे तीन दर्जन से अधिक नव दंपत्ति

locationडिंडोरीPublished: May 22, 2020 09:54:02 pm

Submitted by:

Rajkumar yadav

लॉक डाउन से टूट रहा है कुप्रथाओं का मिथक शादी समारोह और मृत्यु भोज पर लगा विरामलाखों रुपए की बची फिजूलखर्ची आगे ऐसे ही आयोजन किए जाने की बात कर रहे समाज के लोग

More than three dozen newly married couples tied up with social distance

More than three dozen newly married couples tied up with social distance

डिंडौरी. कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन ने लोगों को नए-नए अनुभवों को आत्मसात कराया है। तो वहीं सदियों से चली आ रही कुप्रथाओं का मिथक भी टूट रहा है। बेटे-बेटियों की शादी के बाद होने वाले बहूभोज हो या अपनों को खोने के बाद गम में भी मृत्यु भोज इस लॉकडाउन में सभी परंपराओं का विराम लगा दिया है। कार्यक्रमों में होने वाले भोज आदि पर पाबंदी से फिजूलखर्ची भी घटी है और लोग भविष्य को देखते हुए मितव्ययी बन रहे हैं। लॉकडाउन में छूट रही कुप्रथा से अच्छा है कि इन परंपराओं को भविष्य में पूरी तरह से पूर्ण विराम लगा दिया जाए। लॉकडाउन के दौरान जिला प्रशासन द्वारा शादी विवाह के दौरान वर-वधू पक्ष से अधिकतम 50 लोगों के शामिल होने की अनुमति दी गई है। तो सामूहिक कार्यक्रम व भोज आदि पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है। जिले की बात करें तो लॉकडाउन में ही करीब तीन दर्जन से अधिक जोड़ो के विवाह हो चुके हैं और नए आवेदन आगे की तारीख के लिए जा चुके हैं। अब इसके लिए समाज के लोगों को आगे आना होगा तभी इस तरह की परंपरा पर आगे रोक लग सकेगी। साथ ही इस तरह की परंपराओं पर होने वाली फिजूलखर्ची को भी रोका जा सकता है। अगर लोगो को मृत्यु भोज और विवाह कार्यक्रम को बढचढ कर करना ही है तो लोगो इस बात का भी खयाल रखना होगा कि अपनी क्षमता या सामर्थ से अधिक खर्च न करें। इन सब कार्यक्रमो में दूसरो से कर्ज लेकर ये कार्यक्रम न किए जाए।
लॉक डाउन में हुए 3 दर्जन से अधिक विवाह
सोशल डिस्टेंस के साथ शादी करने की अनुमति लेकर विवाह करने वाले लोगों की संख्या तीन दर्जन से अधिक है। 14 अप्रैल से 21 मई तक तीन दर्जन से अधिक विवाह हुए हैं। एसडीएम कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार अभी और भी आवेदन आ रहे हैं। जानकारों के अनुसार इस शादी पर करीब 3 से 5 लाख का खर्च आता है, लेकिन अभी पूरा का पूरा पैसा बच रहा है। लॉकडाउन में प्रशासन द्वारा अधिकतम वर और वधु पक्ष को मिलाकर विवाह व निकाह में शामिल होने के लिए 50 लोगों की ही परमिशन दी जा रही है। वहीं लॉकडाउन की वजह से कुछ शादियों की तारीख आगे भी बढ़ी है। यदि लॉकडाउन नहीं होता तो डिंडोरी जिले में 2 करोड़ से ऊपर कारोबार का अनुमान था।
भाई की शादी में लाखों के खर्च से बचे
डिंडोरी नगर में रहने वाले संदीप कांसकार ने बताया कि 18 मई को मेरे छोटे भाई निलेश कांसकर की शादी हुई है। शादी में वधू वर पक्ष के करीब 40 से 45 लोग शामिल हुए थ।े इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन किया गया। साथ ही शादी में होने वाले खर्च में से करीब पांच लाख भी हमारे बच गए।

मृत्युभोज पारम्परिक प्रथा है, जो आवश्यक है। इसे निभाया जाना चाहिए। वही विवाह में लोग बिना नाते रिश्तेदारों और समाज के लोगो को बुलाये बगैर शादी नहीं कर सकते हैं। फिर कोशिश होना चाहिए कि अधिक लोगों को न जोड़ा जाए। जैसे लॉकडाउन के दौरान कार्यक्रम हुए हैं। भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम की कोशिश होनी चाहिए।
धनन्जय बर्मन
अध्यक्ष, मांझी समाज
लॉक डॉउन में कुछ तकलीफ जरूर हुई, लेकिन इस दौरान कुछ सीखने को भी मिला। 50 लोगों को लेकर शादी का फैसला अच्छा है फालतू खर्चे से बचेंगे। वही मृत्युभोज कराने को लेकर सब की भिन्न भिन्न राय है। मेरा मानना है कि फिजूल खर्च से बचा जाना चाहिए और अपने सामर्थ से अधिक कर्ज लेकर कोई कार्यक्रम नहीं करना चाहिए, चाहे विवाह हो या मृत्युभोज।
डॉ. आनन्द गवले
सचिव मेहरा समाज
वर्तमान प्रदर्शनकारी आधुनिक युग में शादी विवाह में भारी फिजूलखर्ची देखने में आती है। जिसमें रोक लगना चाहिए। कोरोना काल में हो रही शादियां सुखद सकारात्मक संदेश दे रही हैं, जिसे अपनाना समाज के लिए हित में होगा। फिजूलखर्ची पर रोक लगना चाहिए। मृत्यु उपरांत दिया जाने वाला मृत्युभोज मेरी दृष्टि में एक कुरूती ही है, जिसे बंद होना चाहिए। खिलाने वाला अप्रसन्नता से खिलाता है और खाने वाला भी अप्रसन्नता से खाता है।
डॉ. सुनील जैन
जिलाध्यक्ष जैन समाज
बेशक समाज एक सकारात्मक दिशा की ओर चल पड़ा है और विवाह समारोह आदि में फिजूलखर्ची पर नियंत्रण अत्यावश्यक था। इसके अलावा मृत्यु भोज पर सामाजिक कुरीति है रोक लगना ही चाहिये।
राजेश विश्वकर्मा
जिलाध्यक्ष विश्वकर्मा समाज
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