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नक्सली कहने पर फूटा आदिवासियों का गुस्सा

locationडिंडोरीPublished: Dec 12, 2017 05:32:08 pm

Submitted by:

brijesh sirmour

केबिनेट मंत्री के विरोध में उतरे ग्रामीण, कार्रवाई के लिये सौंपा ज्ञापन

Naxalites angry on tribals angry about the tribals

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डिंडोरी.रूढ़ी प्रथा पारंपरिक ग्रामसभा का समर्थन करने वाले एवं इस मुहिम में शामिल आदिवासियों को नक्सली करार देना केबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे को भारी पड़ रहा है। पिछले दिनों दिए एक साक्षात्कार में मंत्री की फिसली जुवान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए लामबंद सैकडों अदिवासियों ने सोमवार को कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर मंत्री धुर्वे के विरूद्ध कार्रवाई की मांग कर ज्ञापन सौंपा है। एक माह में कार्रवाई न होने की दशा में आदिवासियों ने जिला स्तर पर बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी है। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय दण्ड संहिता 124 ए के तहत मंत्री पर मुकदमा दायर करने की मांग करते हुये जमकर नारेबाजी भी की है। गौरतलब है कि जिले में निवासरत आदिवासियों का बड़ा वर्ग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 (1), 13 (3)(क), 19(5)(6), के तहत रूढ़ी प्रथा पारपंरिक ग्रामसभाओं का आयोजन कर रहा है। इस दौरान इन ग्रामों में उक्त अनुच्छेदों को सूचना पटल में अंकित कराया गया है। जिस पर आपत्ति जताते हुये मंत्री ने इसे नक्सलवाद गतिविधियों का प्रारंभिक रूप बतलाया था। जिसके बाद इलाके में आदिवासी समाज ने इस बावत निंदा की थी। ग्राम पलकी, सरवाही माल, कोहानी माल, कटेहरा, बिजौरी, खरगवारा, जलेगॉव, खितगांव, घेवरी, खम्हरिया आदिवासी (अनुसूचित जनजाति)समाज के ग्राम प्रमुख पंचगणों ने सोमवार को जिला मुख्यालय पहुंचकर राष्ट्रपति, राज्यपाल, गृहमंत्री भारत सरकार, मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर केबिनेट मंत्री ओमप्रकाष धुर्वे के विरूद्ध संविधान के अनुच्छेदों को नक्सलवादी गतिविधियों की प्रारंभिक रूपरेखा बताना भारतीय दण्ड संहिता 124 ए के तहत देश द्रोह का मुकदमा कायम करने ज्ञापन सौंपा गया।
कार्रवाई नहीं होने पर उग्र होगा विरोध
उपस्थित आदिवासियों ने कहा कि अगर प्रदेश सरकार इन्हें मंत्री पद से बर्खास्त नहीं करती है तो पूरा आदिवासी समाज विरोध करेगा। जिला डिंडौरी भारतीय संविधान के अनुच्छेंद 244 (1) के तहत पांचवी अनुसूचित क्षेत्र है। यह कि 26 जनवरी 1950 को हमारे देश में भारतीय संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान लागू होने के साथ ही संपूर्ण देश एंव राज्यों में संविधान के तहत विधायिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका संचालित है, साथ ही देश के नागरिकों के हित एंव अधिकार शिक्षा संपति के अंधिकार, जीने के अधिकार दिये गये है, लेकिन संविधान में देश के मूल नागरिक आदिवासी समाज (अनुसूचित जनजाति) के लिऐ पांचवी एंव छठी अनुसूची में विशेष अधिकार दिये गये है। विडम्बना यह है, कि आजादी के 70 वर्षो के बाद भी पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूची का परिपालन राज्य सरकारों द्वारा पूर्ण रूप से परिपालन नहीं किया गया है। इसीलिए आदिवासी समाज स्वंय ही भारतीय संविधान में वर्णित अनुच्छेदों का परिपालन आदिवासियों के रूढ़ी प्रथा पारंपरिक ग्रामसभा के तहत किया जा रहा है। अगर भारतीय संविधान के अनुच्छेद गलत है, तो केबिनेट मंत्री बतायें कि देश किस संविधान से चल रहा है। ज्ञापन में मुख्य रूप से ग्राम पलकी, सरवाही, कटेहरा, खरगवारा, बिजौरी, कोहानी, सारंगपुर, कनेरी, भोड़ासाज, केवलारदर, परसेल, जलेगांव, खितगांव, खम्हरिया, घेवरी, कोन्हा खम्हरिया रैयत, कमको मोहनिया आदि ग्रामों के मुकददम एंव अन्य ग्रामीण उपस्थित रहे।
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