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माता पिता के साथ स्कूली बच्चो ने भी किया पलायन

locationडिंडोरीPublished: Nov 06, 2018 04:14:02 pm

Submitted by:

shivmangal singh

प्राथमिक शाला कुदवारी से नदारद है 38 बच्चे

Parents also leave school with parents

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डिंडोरी। जिले मे रोजगार की कमी के चलते ग्रामीण इलाको से बड़ी संख्या मे रोजगार की तलाष मे ग्रामीण अन्य षहरों व दूसरे प्रदेशों मे पलायन करते है। मजदूरी की तलाशमे कई गांवो पूरा परिवार पलायन करता है जिनमे स्कूली बच्चे भी शामिल रहते है। पालक अपने बच्चो का नाम स्कूलो मे तो दर्ज करा देते है लेकिन जीवकोपार्जन के लिये जब जिले से बाहर जाना पड़ता है तो साथ मे अध्ययनरत बच्चो को भी ले जाते है। ऐसा नही कि उन्हे अपने बच्चो की पढ़ाई की चिंता न हो लेकिन मजबूरी ही कहें कि उन्हे अपने बच्चो को साथ ले जाना पड़ता है। चंूकि पूरा परिवार रोजगार की तलाश मे पलायन करता है। ऐसी दशा बच्चो की देख रेख करने वाला कोई भी जिम्मेदार नही रहता। अधिकतर गांव मे ऐसे अनेको परिवार है जिनके साथ पढऩे वाले बच्चे पलायन कर चुके है। इसका उदाहरण देखने मिला डिंडोरी विकासखण्ड के कुदवारी गांव मे जहंा संचालित प्राथमिक शाला मे 138 विद्यार्थी दर्ज है लेकिन सत्र शुरूआत के कुछ दिनों बाद से लगभग 30 बच्चे स्कूल आना बंद कर दिये इस दौरान बारिश का भी दौर था। जिसके चलते शिक्षको ने बारिश के कारण बच्चो का स्कूल न आना एक कारण समझा लेकिन लंबे समय से जब विद्यार्थी लगातार गैर हाजिर रहे तो पालको से संपर्क करने उनके घरों पर पहुंचे तो जहां दरवाजा मे ताला जड़ा देखा और पड़ोसियो से उनके संबंध मे जानकारी ली तो पता चला कि रोजगार की तलाश मे पूरा परिवार लगभग एक माह से गांव से बाहर गया हुआ है और उनके साथ पढऩे वाले बच्चे भी पलायन कर चुके है। शिक्षको ने अन्य स्कूल मे दर्ज गैर हाजिर बच्चो के घर के तरफ रूख किये तो उन घरो मे भी दरवाजे मे ताला नजर आया और शिक्षको ने अनुमान लगाया कि गैर हाजिर बच्चे अपने माता पिता के साथ पलायन कर चुके हैं।
जिले में यह स्थिति सिर्फ कुदवारी की नहीं है बल्कि अधिकांश गांवों की है। रोजगार की तलाश में यहां ग्रामीण पलायन करे हैं और साथ में उनका परिवार भी यहां से चला जाता है। ऐसे में बच्चों की पढाई प्रभावित हो जाती है। बच्चों का प्रवेश स्कूलों में करा तो लिया जाता है लेकिन जब अभिभावक रोजगार के लिए दूसरे शहरों में जाते हैं तो वह भी उनके साथ चले जाते हैं। रोजगार के साधनों के अभाव का खामियाजा बच्चों को भुगतना पडता है। शिक्षकों के साथ भी मजबूरी होती है कि उनके गांव में एक भी अप्रवेशी नहीं छूटना चाहिये लिहाजा वह सभी का दाखिला कराते हैं और बाद में बच्चे चले जाते हैं। फिलहाल प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में अनुत्तीर्ण करने की बाध्यता समाप्त किये जाने के बाद होता यह भी है कि बच्चे साल भर नदारत रहने के बाद यहां पहुंचेंगे परीक्षा देंगे और अगली कक्षा के लिये प्रोन्नत कर दिये जायेंगे।
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