डिंडोरी

मां के दरबार में भक्तों की भीड़, मां ब्रम्हचारणी की आराधना आज

घट स्थापना विधि विधान से की गई

डिंडोरीOct 11, 2018 / 04:47 pm

shivmangal singh

The crowd of devotees in the court of Mother’s mother, worshiping Mother Brahmarchani today

डिंडोरी। शक्ति और भक्ति का पर्व नवरात्रि बुधवार से शुरु हो गई है। दुर्गा पण्डालों व देवी मंदिरों में घट स्थापना विधि विधान से की गई इसके साथ ही जवारे भी बोये गये। सुबह से ही दुर्गा समितियों के सदस्य ढोल ढमाकों के साथ माता की प्रतिमा ले जाते नजर आये। आज माता के ब्रम्हचारिणी स्वरूप की पूजा अर्चना की जावेगी। नवदुर्गा में दूसरा स्वरुप मां ब्रम्हचारिणी का है इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। कठोर साधना और ब्रम्ह में लीन रहने के कारण इनको ब्रम्हचारिणी कहा गया। छात्रों और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभ फलदायी है, जिनका चन्द्रमा कमजोर हो तो उनके लिए मां ब्रम्हचारिणी की उपासना करना अनुकूल होता है। मां ब्रम्हचारिणी की उपासना के समय पीले या सफेद वस्त्र धारण किये जाते हैं साथ ही माता को सफेद वस्तुओं का अर्पण किया जाता है। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रम्हचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रम्ह का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रम्हचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रम्हचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान Óचक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
माँ ब्रम्हचारिणी स्वरूप की पूजा विधि
देवी ब्रम्हचारिणी की पूजा में सर्वप्रथम माता की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें तथा उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को प्रसाद अर्पित करें. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिकपाल, नगर देवता, ग्राम देवता की पूजा करें।
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