डिंडोरी

प्रशासन की समझाइश के बाद भी नहीं माने ग्रामीण, निर्माण स्थल पर डटे रहे

खरमेर बांध का मामला, ग्रामीण कर रहे विरोधमौके पर पहुंची जिला पंचायत अध्यक्ष

डिंडोरीFeb 27, 2020 / 10:34 pm

Rajkumar yadav

The villagers did not agree even after the administration’s explanation, stayed on the construction site

डिंडोरी. जिले के समनापुर के अंडई में स्वीकृम खरमेर बांध निर्माण स्थल पर धरना दे रहे ग्रामीणों के बीच गुरुवार को जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति प्रकाश धुर्वे पहुंची। डूब प्रभावितों द्वारा दिए जा रहा धरना लगभग माह भर से चल रहा हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष ग्रामीणों के पक्ष में मौजूद अधिकारियों से चर्चा की। गुरुवार को स्थल पर सुबह से ही जल संसाधन विभाग के अनुभागीय अधिकारी यूएस चौधरी भी ग्रामीणों के बीच उपस्थित थे। उनके द्वारा लोगों की बात सुनी जा रही हैं।
एडीएम को घेरा
गौरतलब है कि 26 फरवरी को जिला प्रशासन दल बल के साथ धरना स्थल पर पहुंचा था। भारी पुलिस बल निर्माण स्थल पर पहुंचने से ग्रामीणों में और अधिक आक्रोश पनप गया। इसी बीच बातचीत के दौरान एडीएम रमेश सिंह की बातों से नाराज महिलाओं ने उन्हें घेर लिया तब पुलिस बल को अधिकारी को सुरक्षा घेरा बना कर निकालना पड़ा था।
सूची में मृतकों का नाम
गौरतलब है कि जल संसाधन विभाग द्वारा इस बांध का निर्माण कार्य करवाया जाना है और पिछले एक साल से भी अधिक समय से समनापुर में ठेकेदार के कुछ लोग सहमति, पंचायत की स्वीकृति आदि काम करने में लगे हुए हैं। वहीं जल संसाधन विभाग का अमला भी गुपचुप तौर पर सक्रिय हैं। कुछ माह पूर्व भी जब जल संसाधन विभाग के अनुविभागीय अधिकारी यू एस चौधरी ने क्षेत्र के जिन लोगों ने मुआवजा राशि ले ली हैं उनकी सूची क्षेत्रवासियों को दिखाई तब उस सूची में कुछ मृतकों के नाम होने से ग्रामीण उन पर भड़क गए थे। बताया जाता है कि ठेकेदार और विभाग द्वारा कई बिचौलियों के माध्यम से कार्य करवाया जा रहा है।
नहीं दिखाई सूची
जब जिला कलेक्टर सहित पूरा अमला निर्माण स्थल पर बांध निर्माण में आ रहे गतिरोध और धरना दे रहे ग्रामीणों से चर्चा करने पहुंचे तब भी चर्चा के बीच जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने ये तो कहां की बड़ी संख्या में लोग मुआवजा ले चुके हैं पर जब लोगों ने सूची मांगी तो उन्हें आज सूची दिखाने कहा गया। जबकि उन्हें मालूम है कि जब भी मुआवजा दे दिए जाने की बात करेंगे तो जनता सूची देखने मांगेगी पर यह ऐसा जानबूझकर ही करते हैं और न केवल जनता बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों को भी अंधेरे में रखने का आरोप इनके ऊपर लोग लगाते है।
पारदर्शी प्रक्रिया नहीं
जल संसाधन विभाग और ठेकेदार को यह ज्ञात हैं कि समनापुर विकासखंड में डूब प्रभावित गांव के लोगों का सतत संपर्क कई प्रतिष्ठितजनो, जनप्रतिनिधियों और व्यापारियों से हैं पर बांध निर्माण को लेकर न तो कभी विकासखंड मुख्यालय के लोगों को भरोसे में लिया गया न ही ग्रामीण अंचल में कोई ऐसा आयोजन रखा गया जिससे सरकारी नीति, मुआवजे की दर, पुनर्वास व्यवस्थाओं की जानकारी डूब प्रभावितो लोगों को सार्वजानिक तौर पर दी जाती और उनकी समस्याओं को सुनकर हल निकाला जाता। दूसरी ओर ग्रामीणों का आरोप है कि डूब प्रभावित ग्रामो की पंचायतों से भी विधिवत सहमति ग्राम सभा करा कर नहीं ली गई। जिसको लेकर उन्होंने न्यायालय में भी वाद प्रस्तुत कर रखा हैं।
लटका रहता हैं ताला
समनापुर विकासखंड के अंतर्गत बांध का निर्माण होना हैं। जल संसाधन विभाग का समनापुर में कार्यालय तो वर्षों से स्थापित है किंतु सालों से इस कार्यालय में ताला लटका रहता हैं। वहां चौकीदार तक मौजूद नहीं रहता। लगभग चार सौ करोड़ रूपए के बांध निर्माण का कार्य जिस एजेंसी की देखरेख में हो रहा हो वहां अमले का पदस्थ न होना अधिकारियों का वहां उपस्थित न रहना, विभाग की सक्रियता पर सवाल खड़े करता हैं। जब से बांध निर्माण की जानकारी लोगों को मिली तब से हर दिन ग्रामीण अपनी जमीन के कागज मुआवजा आदि की जानकारी जैसी अपनी समस्याओं को लेकर चक्कर काटते देखे जा सकते हैं पर उनकी सुनवाई करने वाला वहां कोई नहीं हैं। भटकते भटकते ग्रामीण स्वयं को उपेक्षित मान बैठेे हैं और संशय के चलते फिर लाभ बंद होकर अब बांध का विरोध कर रहे हैं।
जन उपेक्षा से बिगड़ा मामला
बांध निर्माण की जानकारी के बाद से ही इसका विरोध होने लगा था किन्तु तमाम विरोध के बाद भी जब बांध निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ती रही तब बहुत से ग्रामीण इसके पक्ष में आने लगे थे। इसका प्रमाण हैं कि मुआवजे हेतु बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जमीनो के दस्तावेज जमा कराए, सहमति दी और बैंक खाते भी खोले गए, बहुत सारे लोगों के खातों में मुआवजे कि राशि भी जमा हुई। अचानक विरोध करने वाले लामबंद होने लगे और निर्माण स्थल पर धरने की शुरुआत हो गई महिलाएं आगे आकर आंदोलन करने लगी। इसके पीछे कारण यही है कि मन बना चुके लोगों की कोई सुनने वालाए उनकी बातो का निराकरण करने वाला नहीं हैं और वे जल संसाधन विभाग के कार्यालय, ठेकेदार के लोगों से लेकर कलेक्ट्रेट में भू अर्जन शाखा में भटकते फिरते हैं और उनकी सुनवाई न होने से स्वयं को अभी से उपेक्षित समझ रहे हैं।

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