Villagers wandering in neutrality due to negligence
डिंडोरी। वन भूमि में काबिजों को वनभूमि का अधिकार देने के लिये वनाधिकार कानून लागू किया गया। जिसे लागू हुए लगभग दशक भर से अधिक का समय बीत गया है लेकिन प्रक्रिया शुरू होने से लेकर आज दिनांक तक जिले की वन भूमि में रहने वाले वासिंदों को अधिकार पत्र से वंचित रखा गया है। सालों से यह ग्रामीण एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। जबकि अधिनियम के अनुसार निश्चित दस्तावेजों के बाद काबिजों को प्रमाण पत्र दिया जाना है। जिले में बडा इलाका वन भूमि का है और यहां पर कई दशकों से परिवार काबिज हैं। पीढियां गुजर गई हैं लेकिन आज भी इन्हें जंगल की भूमि का अधिकार नहीं दिया गया है। कानून के अस्तित्व में आने के बाद भी किस तरह कागजी कार्रवाई के नाम पर ग्रामीणों को भटकाया जा रहा है इसका उदाहरण जिले के विभिन्न गांवों में देखा जा सकता है। ऐसा ही मामला समनापुर विकासखण्ड के राम्हेपुर गांव में सामने आया है। जहां के दर्जनों ग्रामीण सालों से अधिकार पत्र के लिये चक्कर काट रहे हैं लेकिन आज दिनांक तक इनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका है। ग्रामीण इस उम्मीद में कि उन्हें अधिकार पत्र मिलेगा कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वह लगभग चार दशक पूर्व से वन भूमि पर काबिज हैं और लगातार मेहनत कर भूमि पर लागत लगाकर उसे कृषि योग्य बना चुके हैं। इसी भूमि से इनके परिवार का भरण पोषण होता है। जीविकोपार्जन का एकमात्र सहारा इनकी काबिज भूमि ही है लेकिन वनभूमि का अधिकार पत्र इन्हें आज दिनांक तक नहीं मिला है। जबकि वनभूमि में काबिजी को लेकर इन ग्रामीणों के विरूद्ध न्यायालय में भी प्रकरण चला है। बार बार आवेदन करने के बाद भी आज दिनांक तक इनके आवेदन पर विचार नहीं किया गया है। ऐसा नहीं है कि ग्रामीण सामान्य तौर पर कार्यालय आकर आवेदन करते हैं बल्कि एक आवेदन के पीछे ग्रामीणों की दिन भर की मजदूरी समाप्त हो जाती है साथ ही इतनी संख्या में जिला मुख्यालय आने जाने में हजारों रूपये खर्च हो जाते हैं लेकिन कार्यालयों में इनके आवेदन को मात्र कागज का टुकडा समझा जाता है। ग्रामीणों के आवेदन पर विचार नहीं किया जाता है जिस कारण आज भी यह अधिकार पत्र से वंचित हैं। आवेदन देने पहुंचे ग्रामीणों में लामू सिंह, शेर सिंह, माहूलाल, बैसाखू, लालसिंह, अमरसिंह, रामा, चाउ, गेंदलाल, समरूबाई सहित अन्य ग्रामीण शामिल थे।