इलाज से पहले ये जांचें जरूरी
इलाज से पहले रोगी की पूरी हिस्ट्री ली जाती है। इसमें उसके वजन, लंबाई, व्यवहार में बदलाव के समय के साथ देखा जाता है कि रोगी को परेशानी आनुवांशिक तो नहीं है। इसके बाद इलेक्ट्रोलाइट, कैल्शियम और थाइरॉयड हॉर्मोन की जांच की जाती है, ताकि बीमारी का सटीक कारण पता चल सके।
दवा और काउंसलिंग से करते रोगी का इलाज
ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित मरीज में घबराहट, बेचैनी, नशे की लत लग जाना, गुस्सा आदि जैसे लक्षणों को खत्म करने की दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा दिमाग को शांत और शरीर को रिलैक्स करने की दवाएं शुरू की जाती हैं। इस प्रक्रिया में काउंसलिंग की अहम भूमिका होती है। रोगी को समझाया जाता है कि कैसे उसकी ये आदत उसे नुकसान पहुंचा रही है। कॉग्निटिव बिहेवियर थैरेपी से दिमाग के भीतर चल रहे नकारात्मक भाव खत्म किए जाते हैं। इस रोग से ग्रसित मरीज को यह समझाने की कोशिश की जाती है कि ‘हैप्पीनेस कम्स इन ऑल साइजेस’। जो जैसा है उसे स्वीकार करना चाहिए और खुश रहना चाहिए।
रोगी के लिए करते हैं बैलेंस्ड डाइट प्लान
ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित मरीज के खानपान को सुधारने के लिए उसके बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर बैलेंस्ड डाइट प्लान की जाती है। इसमें खासतौर पर मल्टी-विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की मात्रा का संतुलन बनाकर रखा जाता है जिससे शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल सकें। किसी घर में ईटिंग डिसऑर्डर का मरीज है तो दवा और इलाज के साथ उसके खानपान पर ध्यान देना चाहिए जिससे उसे कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या न हो। रोगी को आहार के साथ एक्सरसाइज करने की सलाह भी दी जाती है।
वेट कम होने से शरीर को होता नुकसान
ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित मरीज जब खाना खाना कम कर देता है या बंद कर देता है तो वजन तेजी से गिरता है। इसका सीधा असर उसके लिवर, किडनी और हार्ट पर पड़ता है। शरीर में पोषक तत्वों की कमी से इन अंगों की मसल्स कमजोर होती हैं और इलेक्ट्रोलाइट की कमी हो जाती है। इस कारण रोगी की सेहत तेजी से गिरती है जिससे उसके मन में आत्महत्या के विचार तक आने लगते हैं। ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित सौ में से एक मरीज गंभीर परिस्थिति में आत्महत्या भी कर लेता है।
डॉ. विजय चौधरी, कंसलटेंट मनोचिकित्सक, एसएमएस, जयपुर