लक्षण : शुरुआत में नाक बहना और फिर हल्की खांसी आने से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। गंभीर स्थिति में बच्चे का शरीर नीला पड़ जाता है और उसे बोलने में परेशानी होती है।
इलाज : आमतौर पर बचपन में स्पायरोमेट्री जांच से यह पता चल जाता है कि बच्चे को अस्थमा है कि नहीं। बच्चे को रोग की गंभीरता के अनुसार पंप के माध्यम से दवाइयां दी जाती हैं। यदि बच्चे को अनुवांशिक रूप से अस्थमा न हो तो दवाओं व देखभाल से इस रोग को नियंत्रित किया जाता है। माता-पिता को चाहिए कि वे स्कूल में बच्चे के रोग के बारे में बता दें ताकि अस्थमा का अटैक आने पर समयानुसार दवा या इन्हेलर का प्रयोग किया जा सके।