स्ट्रोक के रिस्क फैक्टर क्या हैं? किसे होती दिक्कत?
हाई ब्लड प्रेशर , धूम्रपान, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, खराब डाइट, अधिक वजन, हृदय रोग व सिकल सैल एनीमिया अहम हैं। इन्हें नियंत्रित कर रोग पर काबू पा सकते हैं। व्यक्ति की उम्र, स्ट्रोक की पुरानी हिस्ट्री आदि को भी ध्यान में रखते हैं।
इसके लक्षण क्या हैं?
रोग के लक्षणों को एफएएसटी (फास्ट, आर्म, स्पीच व टाइम) से समझ सकते हैं। इसमें रोगी का चेहरा एक तरह से लटक जाता है, दोनों या कोई एक हाथ के सुन्न होने के साथ बोलने में दिक्कत होती है। ऐसे में उसे जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए।
बीमारी का इलाज क्या है?
रोग के लिए निर्धारित दवाएं चलती हैं। साथ ही ब्लड क्लॉट को पिघलाने वाली भी दवा देते हैं। मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टोमी प्रक्रिया के तहत आकार में बड़े ब्लड क्लॉट को तार या स्टेंट से बाहर निकालते हैं। सक्शन ट्यूब से क्लॉट खींचना नई तकनीक है।
– डॉ. अतुलाभ वाजपेयी, डायरेक्टर व कंसल्टेंट, न्यूरोसाइंस व इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजिस्ट, उदयपुर
काम की जानकारी…
फाइबर फूड बचाता है दिल के दौरे से
ब्रिटेन के एक मेडिकल जर्नल में छपे शोध के अनुसार ऐसे रोगी जो दिल का दौरा आने के बाद जल्द रिकवरी चाहते हैं वे फाइबरयुक्त फूड (केला, सेब, गाजर, मूली, चोकर युक्त आटे की रोटी) खाएं। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ की इस स्टडी के अनुसार यदि आहार में रेशे की मात्रा रोज 10 ग्राम बढ़ाई जाए तो मौत का खतरा 15 फीसदी तक घट जाता है।