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इस कारण से भी आंखों में होता है मोतियाबिंद

locationजयपुरPublished: Jun 01, 2019 05:48:59 pm

कई मामलों में आंख मेें किसी प्रकार की चोट लगने से मोतियाबिंद बन जाता है जिसे ट्रोमेटिक कैटरेक्ट कहते हैं।

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कई मामलों में आंख मेें किसी प्रकार की चोट लगने से मोतियाबिंद बन जाता है जिसे ट्रोमेटिक कैटरेक्ट कहते हैं।

जन्म के बाद बच्चों में मोतियाबिंद हो सकता है जिसे कॉन्जिनाइटिल कैटरेक्ट कहते हैं। कई मामलों में आंख मेें किसी प्रकार की चोट लगने से मोतियाबिंद बन जाता है जिसे ट्रोमेटिक कैटरेक्ट कहते हैं। यह रोग कई प्रकार का होता है जैसे जोन्यूलर कैटरेक्ट (गाड़ी के पहिए जैसा लैंस का आकार), टोटल कैटरेक्ट (पूरा लैंस सफेद होना), न्युक्लियर कैटरेक्ट (लैंस के मध्य सफेद भाग) व डवलपमेंटल कैटरेक्ट (4-5 साल की उम्र में दिक्कत)।

कारण –
छोटे बच्चों में मोतियाबिंद गर्भावस्था के दौरान होने वाले इंफेक्शन (रुबेला) या अन्य वंशानुगत कारणों से होता है। कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें रोग की वजह का पता नहीं चल पाता।

क्या है रोग के मुख्य लक्षण –
रोग बच्चे की एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है। मोतियाबिंद बढऩे के बाद आंखों की पारदर्शी पुतली के बीचों-बीच सफेद निशान (वाइट प्यूपिल्री रिफ्लेक्स) दिखाई देता है। इससे उसे साफ दिखाई नहीं देता और खिलौने व टीवी को पास से देखने लगता है। रोशनी के प्रति संवेदनशील होने (फोटोफोबिया) और चलते-चलते अचानक गिरने जैसे लक्षण भी सामने आते हैं।

इलाज- सर्जरी व लैंस प्रत्यारोपण से बच्चों में रोग का इलाज होता है। सर्जरी के बाद झिल्ली के दोबारा मोटे होने की आशंका कम हो जाती है। ऐसे में मशीनों से आंख की सभी जांचें, मोतियाबिंद की स्थिति, प्रत्यारोपित होने वाले लैंस का नंबर, आंख के पर्दे व प्रेशर की जांच होती है। सर्जरी के दौरान बारीक टांकें लगाए जाते हैं जिन्हें 4-5 हफ्ते बाद निकाल दिए जाते हैं।

सही समय –
छोटे बच्चों में मोतियाबिंद का पता चलने या मोतियांबिद का आकार 3 मिमी. से अधिक होने पर सर्जरी करना उचित है। एक आंख में मोतियाबिंद होने पर 4 हफ्ते की उम्र में व दोनों आंख प्रभावित हैं तो 6 हफ्ते में सर्जरी की जानी चाहिए। लंबे समय तक ऑपरेशन को टालने पर बच्चे में एम्बलायोपिया रोग की आशंका बढ़ जाती है जिसमें आंखें सुस्त रहती हैं।

ऑपरेशन के दौरान सावधानी –
ऑपरेशन के अंत में 0.05 मिली इंट्राकेमरल मोक्सिफलोक्सासिन एंटीबायोटिक सॉल्युशन को आंख में छोड़ देते हैं ताकि इंफेक्शन की आशंका कम हो सके। सर्जरी के दौरान 0.1 मिली इंट्राकेमरल ट्राइएमसिनोलोन स्टेयरॉएड के प्रयोग से आंख के पीछे वाले भाग में विट्रियस जैली के होने या न होने की जांच करते हैं। सर्जरी के बाद इसी दवा से आंख में सूजन की आशंका नहीं रहती है।

ऐसे निकालते हैं लैंस का नंबर –
छोटे बच्चों में एग्जामिनेशन अंडर एनेस्थीसिया (ईयूए) के दौरान आंख की बायोमेट्री करते हैं। ए-स्कैन नामक मशीन से आंख की लंबाई व हैंड हेल्ड केरोटोमीटर से कॉर्निया का पावर निकालते हैं। इसे के-रीडिंग कहते हैं। इन दोनों जांचों से आंख में प्रत्यारोपित होने वाले लैंस का नंबर निकलता है। कृत्रिम लैंस प्रत्यारोपण के बाद बच्चों में मोतियाबिंद व मोनोफोकल लैंस प्रत्यारोपण के बाद पास व दूर का चश्मा लगाना जरूरी होता है।

फॉलो-अप –
सर्जरी के बाद साल में दो बार एनेस्थिसिया देकर आंख के प्रेशर, पर्दे और लैंस की स्थिति की जांच होती है। कई बार सर्जरी के बाद आंख की सुस्ती (एम्बलायोपिया) के इलाज के लिए ऑक्ल्यूजन थैरेपी करते हैं। इसके लिए साल में दो बार नियमित आंख का परीक्षण होता है।

सावधानी –
माता-पिता ध्यान रखें कि बच्चा न ही आंख को मसले व न ही रगड़े। आंखों में रेगुलर ड्रॉप डालें। सर्जरी के बाद 10 दिन तक आंख पर पानी न लगने दें।

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