बढ़ रहा है खतरा –
एक-दो दशक पहले बच्चों को टाइप वन डायबिटीज ही होती थी लेकिन अब उन्हें टाइप टू डायबिटीज भी होने लगी है। यह वंशानुगत रोग है लेकिन मोटे, आलसी या खानपान में लापरवाह बच्चों को टाइप टू डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है।
विशेषज्ञ की राय –
बच्चे को अधिक प्यास लगे, बार-बार पेशाब आए, बिस्तर गीला करे, खूब खाए लेकिन वजन घटे तो जांच करवाएं क्योंकि ये बच्चे में मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं। इन्हें अनदेखा करेंगे तो उन्हें कीटोएसिडोसिस हो सकता है यानी भूख न लगना, उल्टियां, अत्यधिक पेट दर्द, सांस फूलना, गहरी सांस लेना, सुस्त हो जाना या बेहोश हो जाना। माता-पिता को स्कूल में अध्यापक को बता देना चाहिए कि उनके बच्चे को मधुमेह है। ऐसे बच्चे के स्कूल बैग में टॉफी या मिश्री भी रखें और बच्चे को भी समझाएं कि बेचैनी हो तो सबसे पहले इन्हें खाए।
गर्भावस्था व प्रसव से जुड़े खतरे –
इम्पीरियल कॉलेज लंदन के एक शोध के अनुसार आजकल सर्जरी से डिलीवरी का चलन बढ़ रहा है। सर्जरी से जन्म लेने वाले बच्चों में मोटापा, अस्थमा व डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। एक अन्य शोध के अनुसार जिन नवजात शिशुओं को उनकी मांएं कम समय तक फीड करवाती हैं उन्हें भी डायबिटीज हो सकती है। गेस्टेनल डायबिटीज का कारण है गर्भकाल में हार्मोन परिवर्तन। गर्भावस्था के छठे माह में ओजीटी (ओरल ग्लूकोज टेस्ट) कराया जाना चाहिए। यदि महिला में ग्लूकोज की मात्रा अधिक हो तो दवाओं से इसे बच्चे के शरीर में जाने से रोका जाता है।