श्वसन रोग विशेषज्ञों की मानें तो बचपन में यदि बार-बार खांसी और जुकाम हो रहा है तो आगे चलकर इससे अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है। माता-पिता ध्यान दें कि कहीं छोटे बच्चे को महीने में दो बार या इससे ज्यादा एलर्जी या खांसी-जुकाम की शिकायत तो नही हो रही है और बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाने की जरूरत तो नहीं पड़ रही है । हालांकि बच्चे एंटीबायोटिक्स लेने के बाद ठीक हो जाते हैं और हम मानते हैं कि यह नॉर्मल खांसी या एलर्जी है लेकिन यह अस्थमा होने का भी संकेत हो सकता है। इसकी जांच में कोताही नहीं बरतनी चाहिए।
फेफड़ों के सामान्य रोगों का कारण मौसम बदलने से जुड़ा है जिसकी वजह नाक व गले की बीमारी होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी सांस की नली और सांस लेने व छोडऩे का रास्ता एयरवे एक ही है। यह एयरवे नाक से शुरू होकर गले तक जाता है, उसके बाद फेफड़ा शुरू हो जाता है। मौसम बदलने पर होने वाली खांसी की वजह नाक या गले में सूजन व गले की खराश होती है। यदि इस समस्या का इलाज शुरुआत में ही कर दिया जाए तो यह आगे फेफड़ों तक नहीं पहुंचेगी। फेफड़ों में पहुंचने के बाद यह समस्या एलर्जी, इंफेक्शन व निमोनिया का रूप ले लेती है। मौसम में बदलाव से होने वाली खांसी का सबसे बड़ा कारण एलर्जी होता है। इसके अलावा एसिडिटी के मरीजों में भी खांसी की समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति जीआरडी यानी गेस्ट्रिक रिफलक्स होती है जिसमें एसिडिटी ज्यादा होने के कारण एसिड गले तक पहुंचता है और इरिटेशन करके खांसी करता है। ये परेशानी बुजुर्ग मरीजों के साथ स्मोकिंग करने वालों में ज्यादा होती है। ऐसे मरीजों में परेशानी की असली वजह पहचानने में दिक्कत आती है और पेट की समस्या मानकर इलाज होता रहता है।
खांसी का इलाज
यदि सामान्य खांसी है इसके साथ वायरल होगा और अधिकतर मरीजों में यह बिना दवा लिए भी तीन से पांच दिन में खुद ही ठीक हो जाती है। लेकिन खांसी का समुचित उपचार नहीं लेने से इसके निमोनिया में तब्दील होने का खतरा रहता है। खांसी के मरीजों की मुख्यतया चेस्ट एक्सरे व लक्षणों के आधार पर नाक के एक्सरे जैसी जांचें कराई जाती हैं और जरूरत के हिसाब से दवाइयां दी जाती हैं।