scriptशरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है साइटोमेग्लो वायरस | Cytomeglo virus affects many parts of body | Patrika News

शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है साइटोमेग्लो वायरस

Published: Aug 31, 2018 05:38:37 am

साइटोमेग्लो वायरस महिला, पुरुष या बच्चे को किसी भी उम्र में संक्रमित कर सकता है।

शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है साइटोमेग्लो वायरस

शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है साइटोमेग्लो वायरस

साइटोमेग्लो वायरस महिला, पुरुष या बच्चे को किसी भी उम्र में संक्रमित कर सकता है। इसके ज्यादातर मामले बच्चों में पाए जाते हैं जिसे कॉन्जिनाइटल साइटोमेग्लो वायरस इंफेक्शन कहते हैं। यह इंफेक्शन संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। जिसका जरिया ब्लड, यूरिन, शुक्राणु या ब्रेस्ट मिल्क हो सकते हैं। ऐसे में ब्लड ट्रांसफ्यूजन, ऑर्गन ट्रांसप्लांट या यौन संबंध बनाने के दौरान यह वायरस फैलता है। जानें इसका इलाज व बचाव-

जटिलता समझें
गर्भावस्था में इस वायरस से प्रभावित होने पर पहले तीन माह में गर्भस्थ शिशु को इसका खतरा ज्यादा रहता है। जन्म के बाद इसका पता चलता है। गर्भ में यदि बच्चे के दिमाग, अंाख या कान पर यह वायरस असर करे तो उसका शारीरिक विकास नहीं होता। जिससे उसमें पीलिया, निमोनिया, त्वचा पर दाने, दौरे आना, लिवर बढऩे, वजन घटने, सिर का आकार छोटा होने जैसी दिक्कतों की आशंका हो सकती हैं। कई बार उम्र के बढऩे पर इसके लक्षण दिखते हैं। जैसे सुनाई न देना, दिखने में परेशानी या अंधापन व दिमागी कमजोरी आदि।

जानें लक्षण
सामान्यत: यह वायरस खुद-ब-खुद ५-७ दिन में खत्म हो जाता है। लेकिन एड्स, ट्रांसप्लांटेशन, ऑर्गन डोनेशन, नवजात या ऐसे व्यक्ति जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है उनमें इस वायरस के कारण जटिलताएं बढ़ जाती हैं। उनमें यह रक्त के जरिए शरीर में फैलकर खासकर आंख, दिमाग, फेफड़े और लिवर को नुकसान पहुंचाता है। जिस कारण बुखार, डायरिया, सांस लेने में तकलीफ, देखने में परेशानी, फेफड़ों में संक्रमण, रेटिनाइटिस (आंख के रेटिना में सूजन), थकान, गले में सूजन व दर्द और मांसपेशियों में दर्द होने जैसे लक्षण सामने आते हैं।

इलाज : एंटीवायरल दवाएं कारगर
आमतौर पर यह बीमारी बच्चों या बड़ों दोनों में कुछ दिनों में ठीक हो जाती है। लेकिन जिनकी इम्युनिटी कमजोर होती है उनमें वायरस के तेजी से फैलने पर दिमाग, आंख और कान प्रभावित होते हैं। इस वजह से मरीज की हालत गंभीर होने लगती है। इसके लिए एंटीवायरल दवाओं का कोर्स शुरू कर इलाज किया जाता है। इससे वायरस के विकास को रोका जाता है।

जांचें जो हैं जरूरी
ब्लड टैस्ट कर रोग की पहचान करते हैं। इसके अलावा गर्भावस्था में यदि इस वायरस की आशंका हो तो महिला की सोनोग्राफी भी की जाती है।

सावधानी : साफ-सफाई रखना जरूरी
वायरस से बचाव ही रोग की आशंका को घटाता है। हाइजीन और साफ-सफाई को ध्यान में रखना जरूरी है। साथ ही यदि परिवार में कोई सदस्य इस वायरस से पीडि़त हो तो अन्य को सावधानी बरतनी चाहिए।

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