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हड्डियों में कैल्शियम और विटामिन-डी की कमी से हो सकता है ऑस्टियोपोरोसिस

Published: Oct 28, 2017 05:43:36 pm

शुरुआती अवस्था में इस बीमारी के लक्षण हड्डियों व मांसपेशियों में हल्के दर्द के अलावा कुछ खास नहीं दिखते।

Osteoporosis

Osteoporosis

यह है रोग

हड्डियों में पौष्टिक तत्त्वों और अंदरूनी बनावट में कमजोरी आने से ये कमजोर हो जाती हैं। ऐसा लंबे समय तक होने से ये स्वत: टूट जाती हैं या इनमें फ्रैक्चर हो जाता है। यही स्थिति ऑस्टियोपोरोसिस कहलाती है। शुरुआती अवस्था में हड्डी में दर्द होने लगता है जो समय के साथ बढ़ता है। खासतौर पर जो हड्डियां शरीर का भार उठाती हैं जैसे रीढ़ की हड्डी, जांघ का जोड़, कलाई, कूल्हे का जोड़ आदि प्रमुख हैं। आमतौर पर आराम करने पर दर्द में राहत मिलती है लेकिन जोड़ पर दबाव पडऩे से दर्द सुचारू होता है।
प्रमुख कारण

यह बीमारी मुख्य रूप से अधिक उम्र होने के कारण होती है। खराब दिनचर्या भी इसकी वजह है। सूरज की किरणों के संपर्क में कम रहने से हड्डियों में विटामिन-डी और कैल्शियम की कमी हो जाती है। पुरुषों में इसके लिए टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की कमी जिम्मेदार है। आनुवांशिकता, डायबिटीज और थायरॉयड जैसी बीमारियों के अलावा यह कम उम्र के लोगों में सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने, स्मोकिंग करने और शारीरिक गतिविधि के अभाव से भी होता है।
लक्षण

शुरुआती अवस्था में इस बीमारी के लक्षण हड्डियों व मांसपेशियों में हल्के दर्द के अलावा कुछ खास नहीं दिखते। लेकिन बीमारी बढऩे पर मामूली चोट पर भी हड्डियां टूटने या इनमें फ्रैक्चर होने लगता है। इसमें रीढ़, कलाई और हाथ की हड्डी में जल्दी से फ्रैक्चर हो जाता है। मरीज जल्दी थक जाता है और बदन दर्द करता है। आराम न मिले तो विशेषज्ञ को दिखाना जरूरी है।
रोग होने पर ये करें


ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में जंपिंग और स्किपिंग जैसी एक्सरसाइज न करें। वॉक, एरोबिक्स, डांस तथा हल्के स्ट्रेचिंग आदि व्यायाम करने चाहिए। योग मददगार है। पौष्टिक चीजें खाएं। कैल्शियम और विटामिन-डी से भरपूर चीजें ज्यादा खाएं। जैसे दूध और दूध से बने उत्पाद। अगर धूम्रपान करते हैं या शराब पीते हैं तो तुरंत छोड़ दें, इससे बीमारी बढ़ती है।
एक्स-रे, सीटी स्कैन प्रमुख जांचें


बीमारी की शुरुआत में सबसे पहले हड्डियों का घनत्व जांचते हैं जिसके लिए विशेषज्ञ मरीज का बोन मिनरल डेंसिटी टैस्ट कराते हैं। कई बार एक्स-रे, सीटी स्कैन या एमआरआई से भी रोग की स्थिति और गंभीरता का पता लगाते हैं। इन जांचों के आधार पर इलाज और जीवनशैली में बदलाव तय करते हैं।
इलाज


रोग का इलाज दवा और सर्जरी दोनों तरह से होता है। कारण जानने के बाद बीमारी का इलाज तय होता है। शुरुआती स्टेज में डाइट मैनेजमेंट करते हैं। इसके लिए प्रोटीन, कैल्शियम से भरपूर डाइट लेने की सलाह देते हैं। प्रोटीन के लिए फिश, सोयाबीन, स्प्राउट्स, दालें, मुनक्का और बींस खाएं। हड्डियों की कमजोरी दूर करने के लिए कैल्शियम, विटामिन-डी, मल्टीविटामिन्स, बिस्फॉस्फोनेट आदि दवाएं प्रमुख रूप से देते हैं। दर्द ज्यादा होने पर डॉक्टर कई तरह की सर्जरी भी करते हैं। मरीज को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की सलाह देते है।
45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं व 55 से अधिक उम्र के पुरुष में रोग की आशंका ज्यादा है।

बचाव


— 30 साल से अधिक उम्र के लोग डॉक्टरी सलाह से बोन डेंसिटी टैस्ट करवाएं।
— जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है वे कैल्शियम युक्त सप्लीमेंट लें।
— हड्डियों में लचक बनी रहे इसके लिए नियमित व्यायाम करें।
— हर उम्र के लोगों को रोजाना कम से कम एक गिलास दूध पीना चाहिए। दूध से बने उत्पाद भी खाएं।
— जरूरत से ज्यादा वजन उठाने की कोशिश न करें।
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