ऐसे आता है डिप्रेशन
सोच में डूबे रहना, काम में मन न लगना, याद्दाश्त में कमी, निर्णय न ले पाना, हमेशा थके-थके रहना, अनिंद्रा या ज्यादातर सिर्फ सोते रहना, बात-बात पर रोने लगना, भूख न लगना, जिम्मेदारियों से भागना, आत्महत्या का विचार मन में आना डिप्रेशन के लक्षण हैं।
ये हैं डेंजर जोन में
जिनके परिवार में डिप्रेशन की हिस्ट्री हो। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को डिप्रेशन का खतरा ज्यादा होता है। डिलीवरी के बाद हार्मोंस में बदलाव होने पर भी महिलाओं में डिप्रेशन होता है। शराब या किसी नशे की लत वाले लोगों को भी डिप्रेशन होता है। कुछ खास तरह की दवाइयों के साइड अफेक्ट से भी डिप्रेशन होता है।
अंगों पर कैसे असर
डिप्रेशन की स्थिति में दिमाग के ये भाग हाईपर एक्टिव हो जाते हैं।
थैलेमस– दिमाग में मौजूद थैलेमस सोने, जागने, जागरूकता और सतर्कता को नियंत्रित करता है।
हाइपोथैलेमस- यह दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर बनाता है जो कि हमारे दिमाग को मूड, भूख और फीलिंंग का संदेश देते है।
एमिगदाला- गुस्से या आक्रोश की वजह यही एमिगदाला है।
एंटीरियर सिंगुलेट कोरटेक्स– यह भाग सूंघने, अच्छी बातों को याद रखने और गुस्से को नियंत्रित करता है।
न्यूरोट्रांसमीटर- डिप्रेशन की असली जड़ यही न्यूरोट्रांसमीटर है। ये कैमिक्लस होते हैं, जो कि नव्र्स से संदेश प्राप्त करते हैं और हमारे सोच, व्यवहार और मूड में बदलाव का कारण बनते हैं।
असामान्य स्थिति – जब न्यूरोट्रांसमीटर असामान्य हो जाता है तो दिमाग में बनने वाले रसायनों में कमी आ जाती है, जिससे डिप्रेशन होता है।
सामान्य स्थिति – जब न्यूरोट्रांसमीटर सामान्य हो जाता है तो दिमाग शांत और स्थिर रहता है।
ऐसे होता है इलाज-
एंटी डिप्रेसेेंंट्स – ये दवाइयां दिमाग में नैचुरल कैमिकल्स को संतुलित करती हैं। हालांकि इलाज में थोड़ा समय लगता है।
काउंसलिंग – डिप्रेस्ड व्यक्तिकी किसी अच्छे मनोचिकित्सक से कांउसलिंग करानी चाहिए।
व्यवहार में बदलाव – डिप्रेशन के दौरान कई बार मूड स्विंग होते रहते हैं इसीलिए उपचार के दौरान हर्बल थैरेपी और नियमित व्यायाम अपनाया जाता है।