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रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या के कारण होती है शरीर में जकड़न, जानें इसके बारे में

locationजयपुरPublished: Jun 06, 2019 12:27:41 pm

रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस आर्थराइटिस का ही एक प्रकार है। इसमें गर्दन के पीछे से लेकर कमर के निचले हिस्से तक में तेज दर्द के साथ अकड़न रहती है।

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रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस आर्थराइटिस का ही एक प्रकार है। इसमें गर्दन के पीछे से लेकर कमर के निचले हिस्से तक में तेज दर्द के साथ अकड़न रहती है।

रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस आर्थराइटिस का ही एक प्रकार है। इसमें गर्दन के पीछे से लेकर कमर के निचले हिस्से तक में तेज दर्द के साथ अकड़न रहती है। पीड़ित की रीढ़ की हड्डी के जॉइंट्स (वर्टिबे्र) के बीच तेजी से कैल्शियम जमने लगता है। हड्डियां एक-दूसरे से जुड़ने लगती हैं और इनका लचीलापन घटता है। नतीजतन मरीज को उठने, बैठने और झुकने में परेशानी होती है। इस रोग के अधिकतर मामले पुरुषों में पाए जाते हैं। यह ऑस्टियोपोरोसिस का भी कारण बनता है। जिससे हड्डियों के कमजोर होने व फै्रक्चर का खतरा रहता है। शुरुआती अवस्था में इस रोग का इलाज संभव है लेकिन देर होने पर रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आ सकता है। जानिए क्या है एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस और इसका उपचार।

वजह –
एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) एंटीजन प्रोटीन सफेद रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। आमतौर पर सभी एचएलए शरीर को रोगों से बचाते हैं लेकिन एचएलए-बी27 एक ऐसा विशेष एंटीजन है जिससे यह ऑटोइम्यून डिजीज होती है। यदि माता-पिता में किसी एक को यह बीमारी है तो बच्चे को बीमारी होने का 30 प्रतिशत खतरा रहता है। अगर फैमिली हिस्ट्री नहीं है और कोई व्यक्ति एचएलए-बी27 पॉजिटिव है तो इसके 2 प्रतिशत होने की आशंका होती है।

लक्षण –
शुरुआती अवस्था में आराम करने के बाद या सुबह उठते ही पीठ के निचले हिस्से में दर्द रहता है। गंभीर स्थिति में मेरुदंड व कूल्हे के जोड़ में अकडऩ बढ़ने के कारण उठने-बैठने या अचानक मुड़ने में दिक्कत होती है।

टैस्ट-
ब्लड टैस्ट, ईएसआर (इरिथ्रोसाइट सेडिमेंटेशन रेट), सीआरपी (सी-रिएक्टिव प्रोटीन), एचएलए-बी27 टैस्ट के अलावा किडनी, लिवर से जुड़ी जांच व बोन डेंसिटोमेट्री कराई जाती है।

गंभीर अवस्था –
इस स्टेज में रीढ़ की हड्डी मुड़कर धनुष के आकार सी हो जाती है और मरीज सीधा खड़ा नहीं हो पाता। ऐसे में करेक्टिव सर्जरी कर हड्डी को वास्तविक आकार में लाने की कोशिश की जाती है। अगर रीढ़ की हड्डी के साथ घुटने और कूल्हे में दिक्कत बढऩे पर चलना मुश्किल हो जाए तो आर्टीफिशियल जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी से इन्हें बदला जाता है। लेकिन रीढ़ की हड्डी का रिप्लेसमेंट नहीं किया जाता।

प्रमुख अंगों पर असर-
आंखें – एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड 30-40 प्रतिशत लोगों में एंटीरियर यूवाइटिस की दिक्कत हो सकती है। इसमें आंखों का लाल होना, धुंधला दिखना, रोशनी के प्रति संवेदशीलता और विजन में स्पॉट का दिखना इसके लक्षण हैं।
उपचार : लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करें। आई ड्रॉप्स, के अलावा एंटी-टीएनएफ देते हैं।

हृदय – शरीर में सूजन रहने से शरीर में रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में सूजन आ जाती है। इससे कार्डियोवैस्कुलर डिजीज जैसे एंजाइना (सीने में तेज दर्द), हार्ट स्ट्रोक या हार्ट फेल हो सकती हैं।
उपचार : कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, बढ़ता वजन और स्मोकिंग रिस्क फैक्टर हैं, इन्हें नियंत्रित रखकर दर्द को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

फेफड़े – रीढ़ की हड्डी के जॉइंट का धीरे-धीरे जुड़ना शरीर के ऊपरी हिस्से के मूवमेंट में दिक्कत पैदा करता है। इससे फेफड़े प्रभावित होते हैं। जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। यह समस्या रोग गंभीर होने पर होती है।
उपचार : स्मोकिंग से दूरी बनाएं। सांस की दिक्कत होने पर कुछ टैस्ट कराए जाते हैं, रिपोर्ट के आधार पर दवा देते हैं।

किडनी – मरीजों में सेकंडरी एमिलॉयडोसिस की परेशानी देखने को मिलती है। इसमें एम्लायड प्रोटीन-ए तेजी से बनने लगता है जो किडनी के आकार और कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। यह किडनी फैल्योर का कारण भी बन सकता है।
उपचार : शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाएं। इससे किडनी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

स्किन– सोरायसिस के मरीजों इस रोग की आशंका बढ़ जाती है। त्वचा में लालिमा, खुजली, जलन और छोटे-छोटे पैच बन जाते हैं।
उपचार : डीमाड्र्स और एंटी-टीएनएफ दी जाती है।

यह है इलाज –
1. शुरुआती अवस्था में मरीज को नॉन स्टेरॉयडल एंटीइंफ्लेमेट्री दवाएं देते हैं। जो दर्दनिवारक का काम करती हैं। यह बीमारी को आगे बढ़ने से रोकती हैं।
2. रीढ़ की हड्डी के साथ अन्य जोड़ों में आर्थराइटिस (सूजन या दर्द) होने पर डिमाड्र्स (डिजीज मोडिफाइंड एंटीरुमेटिक ड्रग्स) दी जाती हैं।

न्यू ट्रीटमेंट –
एंटी-टीएनएफ एजेंट्स-
(ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर)
एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस शुरुआती अवस्था में डिमाड्र्स दवाएं दी जाती हैं। इनसे आराम न मिलने पर बॉयोलॉजिकल एजेंट दिए जाते हैं। जो काफी हद समस्या को कम करते हैं। ये सामान्य दवाओं के मुकाबले ये काफी महंगे हैं।
बॉयोलॉजिकल एजेंट्स –
ये काफी महंगे होते हैं। ये मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज होते हैं। इसे बायोटेक्नोलॉजी से तैयार करते हैं जो सूजन को कम कर क्षतिग्रस्त हड्डी को दुरुस्त करते हैं।
बायो सिमिलर –
ये बॉयोलॉजिकल एजेंट्स की तरह काम करते हैं लेकिन ऑरिजिनल मॉलिक्यूल नहीं है। ये बायोलॉजिकल एजेंट्स की तुलना में सस्ते होते हैं।

व्यायाम से फायदा…
इस बीमारी में दवाइयों से ज्यादा व्यायाम सकारात्मक असर छोड़ता है। स्वीमिंग, कमर और जॉइंट से जुड़ी एक्सरसाइज व गहरी सांस के साथ किए जाने वाले योगासन काफी कारगर हैं। ऐसे में अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी जैसे प्राणायाम किए जा सकते हैं। इसके अलावा 24 घंटे में कभी भी 20-30 मिनट के लिए पेट के बल लेटने को कहा जाता है। इससे काफी राहत मिलती है। इससे पीड़ित लोगों को शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के साथ एक ही पोजिशन में अधिक देर तक काम न करने की सलाह दी जाती है क्योंकि जरूरत से ज्यादा आराम करने से यह बीमारी बढ़ती है। एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के मरीज हैं तो व्यायाम या योगासन करने से पहले एक बार विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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