रोग और उपचार

रात में हेडफोन लगाकर सोया, सुबह सुनना बंद

कान में इयरफोन लगाकर सो जाने, सुबह सैर के वक्त व बाइक चलाते समय  हैडफोन
लगाकर रखना युवाओं के लिए घातक साबित
हो रही हैं

Jul 04, 2016 / 09:00 am

सुनील शर्मा

girlfriend

जयपुर। रात में कान में इयरफोन लगाकर सो जाने, सुबह सैर के वक्त व बाइक चलाते समय हैडफोन लगाकर रखना, डिस्को के तेज शोरगुल जैसी कई आदतें युवाओं के लिए घातक साबित हो रही हैं। इससे युवा न केवल बहरेपन का शिकार हो रहे हैं, बल्कि उनकी मानसिक शक्ति भी क्षीण हो रही है। आंख, कान-गला विशेषज्ञों की मानें तो तकनीक की ओर बढ़ रहे युवा बहरेपन का अधिक शिकार हो रहे हैं। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुनिया भर में 1.1 अरब किशोर व युवा तेज आवाज की आदतों के कारण बहरेपन की कगार पर हैं।

श्रवण क्षमता से कई गुणा तेज है आवाज
डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक व्यक्ति 85 डेसीबल आवाज आठ घंटे सुन सकता है। जैसे-जैसे 85 डेसीबल से ज्यादा बढ़ता है, वैसे-वैसे सुनने की अवधि कम हो जाती है। इयरफोन, इयरप्लग, हेडफोन की आवाज 136 डेसीबल तक होती है। अधिकांश 105 -110 डेसीबल में गाने सुनते हैं।

मौत को भी दे रहे न्यौता
सड़क पर पैदल या वाहन चलाने वाले युवा बाहरी शोरगुल से बचने के लिए इयरफोन लगाकर बहुत तेज आवाज में गाने सुनते हैं। ऐसे में रेलवे ट्रैक पार करने वाले युवाओं को कान में बज रही तेज आवाज के सामने रेल की आवाज भी सुनाई नहीं देती। इसके चलते कई बार युवाओं की मौत भी हुई है।

केस-1
कुछ दिनों पहले मानसरोवर निवासी अनिरुद्ध कुमार (20) कान में हेडफोन लगाकर सो गए। तेज आवाज में गाने सारी रात कान में गूंजते रहे। सुबह उठने पर अनिरूद्ध को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। उसने डॉक्टर से सम्पर्क किया। डॉक्टर ने बताया कि हेडफोन की तेज आवाज ने उसकी श्रवण शक्ति छीन ली। यह बहरापन स्थाई था।

केस-2
प्रताप नगर निवासी सुनील को सुबह जॉगिंग से लेकर रात को सोने तक इयरफोन लगाए रखने की आदत थी। धीरे-धीरे उसे एक कान से सुनाई देना कम हो गया। एक दिन डिस्को से लौटने के बाद सुनील के कान में सीटी बजने लगी। अगले दिन डॉक्टर से सम्पर्क करने के बाद पता लगा कि लगातार तेज आवाज से सुनील के कान खराब होने लगे हैं।

इयरफोन पर 60 फीसदी से कम रखें वॉल्यूम
ईएनटी डॉ. शुभकाम ने बताया कि फोन में डेसीबल मापना हर व्यक्ति के लिए संभव नहीं होता, इसलिए ईयरफोन की 60 फीसदी से कम आवाज पर ही गाने आदि सुनने चाहिए। वहीं, चाइनीज मोबाइल में यह प्रतिशत 40-50 के बीच ही होना चाहिए। साथ ही 24 घंटे में एक घंटे से ज्यादा इयरफोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

20-35 वर्ष के युवाओं में इयरफोन का उपयोग करने की आदत बढ़ती जा रही है। कई बार एक कान से सुनना कम हो जाता है, जागरुकता के अभाव में शुरुआती दौर में तेज आवाज से उपजी बीमारी को पहचान नहीं पाते। जब दोनों कान से सुनना कम हो जाता है या कान में सीटी की आवाज सुनाई देने लगती है, तब ही लोग अस्पताल का रुख करते हैं।

जानिए आवाज सुनने का स्तर
– फुसफुसाना – 40 डेसीबल
– वार्तालाप – 60 डेसीबल
– अलार्म, ट्रैफिक में – 80 डेसीबल
– ट्रक का हॉर्न – 90 डेसीबल
 डिस्को (स्पीकर से एक मीटर की दूरी) – 100 डेसीबल
 स्टीरियो हेडफोन – 105 डेसीबल

8-10 गुणा बढ़े मरीज
इयरफोन, हैडफोन के अधिक उपयोग के कारण कान संबंधी परेशानियों पिछले सालों में कई गुणा बढ़ गई है। कुछ साल पहले तक सालभर 5-10 मरीज आते थे। अब अकेले एसएमएस में ही कान में नस की कमजोरी से पीडि़त 40-50 लोग हर महीने आ रहे हैं। इयरफोन के लगातार इस्तेमाल से कान में नस की कमजोरी हो जाती है। जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। एक बार नस कमजोर पडऩे पर ठीक नहीं होती। इसके अलावा कान में सूजन, दर्द, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं भी युवाओं को घेर रही हैं।
– डॉ. पवन सिंघल, एसोसिएट प्रोफेसर, ईएनटी, एसएमएस अस्पताल

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