सांस नली में सूजन आ जाती है
अस्थमा (दमा) मरीज को कई तरह से प्रभावित करता है। इसके कई प्रकार और कारण हैं। इसमें सांस नली में सूजन आ जाती है और फेफड़े तक उचित मात्रा में हवा नहीं पहुंच पाती। मरीज का सांस फूलने लगती है जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मोटापा, प्रदूषण, शारीरिक गतिविधियों के अभाव व फास्ट फूड अधिक खाने जैसे कारणों की वजह से समस्या गंभीर होती जा रही है।
क्या करें अस्थमा अटैक के समय
जब इन्हेलर न हो साथ
1. चाय, कॉफी या गुनगुना पानी पीएं : मौके पर मौजूद गुनगुना पानी, चाय या कॉफी पी लें, इनसे सांस नलिकाओं को खुलने में मदद मिलेगी।
2. घबराएं नहींं : अटैक की स्थिति में कहीं सुरक्षित जगह पर आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं।
मुंह जरूर साफ करें : इन्हेलर से ली जाने वाली दवा (पाउडर) के गले में जमने से फंगल इंफेक्शन के कारण मुंह में छाले होने का खतरा रहता है। इसलिए इसे लेने के तुरंत बाद कुल्ला जरूर करें।
1. एलर्जिक अस्थमा
धूल, साबुन, परागकण, जानवरों के बाल, स्मोकिंग, परफ्यूम, प्रदूषित वायु के संपर्क में आने से इस तरह के अस्थमा की शिकायत होती है। मौसम में बदलाव भी एक वजह हो सकती है।
लक्षण व बचाव : खांसी, सांस लेने में घरघराहट की आवाज आना, सीने में जकडऩ। ऐसे में एलर्जंस से दूरी बनाएं। मास्क पहनकर बाहर निकलें।
2. एक्सरसाइज इंड्यूस्ड
व्यायाम के दौरान सांस नली सुखाने वाली ठंडी हवा शरीर में अधिक प्रवेश कर जाती है जो खिंचाव पैदा करती है। हृदय की धड़कनें बढऩे लगती हैं और व्यक्ति मुंह से सांस लेता व छोड़ता है।
लक्षण व बचाव : वर्कआउट के बाद सीने में जकडऩ, सांस लेने में दिक्कत। हल्के वॉर्मअप के साथ व्यायाम शुरू करें। बिना टे्रनर की सलाह से न करें।
3. नाइट-टाइम अस्थमा
कई बार एलर्जंस 6-8 घंटे बाद यानी रात में असर दिखाते हैं। इस कारण ऐसे मरीजों में ज्यादातर अटैक रात के समय ही आता है। इसे नॉक्चरल अस्थमा भी कहते हैं। इसके सही कारण अज्ञात हैं।
लक्षण व बचाव : सांस लेने में दिक्कत व खर्राटों की आवाज। मरीज दिन व रात में दवा लेना न भूलें। इस दौरान इन्हेलर जरूर साथ रखें।
4. चाइल्ड ऑनसेट
इससे पीडि़त 4 से 15 वर्ष तक के बच्चों में अस्थमा के लक्षण दिखते हैं। 80 फीसदी मामलों में यह आनुवांशिक और 20 प्रतिशत में एलर्जी इसका कारण होता है।
लक्षण व बचाव : जल्दी थकना, सोते समय सांस लेने में परेशानी, सीने में जकडऩ। एलर्जी के कारणों का पता लगाकर गंभीरता जानने के लिए लंग फंक्शन टैस्ट की सलाह दी जाती है।
5. एडल्ट ऑनसेट
इसमें अस्थमा का आनुवांशिक प्रभाव बचपन में न दिखकर 40 वर्ष की उम्र के बाद प्रभावी होता है। एलर्जंस जैसे प्लास्टिक, धूल-मिट्टी और जानवरों के बाल आदि दिक्कत बढ़ा सकते हैं।
लक्षण व बचाव : सांस लेने में तकलीफ, रात के समय लगातार खांसी। एलर्जंस से बनाएं दूरी। घर में साफ-सफाई रखें।
जांच
अस्थमा की सामान्य जांच पीक फ्लोमीटर और स्पायरोमेट्री से की जाती है। इससे इस रोग की गंभीरता को मापा जाता है। ऐसे मरीज जिनमें सावधानी बरतने के बाद भी एलर्जी का कारण पता नहीं चलता उन्हें इम्यूनो थैरेपी दी जाती है।
इलाज
इन्हेलर साथ रखने की सलाह दी जाती है। अटैक आने पर यह तुरंत सिकुड़ी सांस नलिकाओं को खोलकर ऑक्सीजन पहुंचाता है। साथ ही दवाइयां भी दी जाती है।
डॉ. वीरेंद्र सिंह, अस्थमा रोग विशेषज्ञ