बीस सेमी. लंबी होती है यूरेथरा
पुरूषों में यूरेथरा (पेशाब नली की लंबाई) करीब बीस सेमी. होती है जबकि महिलाओं में इसकी लंबाई करीब चार सेमी. होता है। चोट लगने पवर करीब पांच सेमी. की यूरेथरा डैमेज होती है। कूल्हे की हड्डी टूटने पर भी यूरेथरा डैमेज होती है। आमतौर पर बुजुर्गो में या सडक़ हादसे में घायल होने वाले लोगों में अधिक होती है। स्ट्रिक्चर दो सेमी. तक का है तो दूरबीन की मदद से ऑपरेट कर उसे ठीक करते हैं। स्ट्रिक्चर का आकार दो समी. से अधिक है तो बड़े ऑपरेशन चीरा लगाकर परेशानी को दूर करते हैं।
म्यूकोसा ने बनाते हैं नया यूरेथरा
स्ट्रिक्चर को दूर करने के लिए यूरेथ्रोप्लास्टी भी करते हैं। इसमें रोगी के गाल के भीतर की त्वचा जिसे म्यूकोसा कहा जाता है उस खाल से नई यूरेथरा बनाकर खराब हो चुकी यूरेथरा को निकाल दोनों हिस्सों के बीच जोड़ते हैं। इसके अलावा जीभ के निचले हिस्से जिसे बकल म्यूकोसा कहते हैं उस हिस्से की त्वचा से नई पेशाब की नली से ग्राफ्टिंग कर परेशानी को दूर किया जाता है।
गुुटखा खाने वाले में थोड़ी मुश्किल
जो लोग गुटखा, पान मसाला, तंबाकू या सिगरेट पीते हैं उन्हें स्ट्रिक् चर की समस्या हुई तो उनके गाल की म्यूकोसा का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। इसका कारण है पान मसाला खाने की वजह से म्यूकोसा की उपरी परत खराब हो जाती है। इस परत से यूरेथ्रोप्लास्टी करने पर रोगी को संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में ब्लैडर के कुछ हिस्से को काटकर यूरेथरा बनाया जाता है जिससे रोगी की परेशानी दूर होती है।
80 से 90 फीसदी है सक्सेस रेट
यूरेथरा डैमेज होने यानि स्ट्रिक्चर की तकलीफ में ऑपरेशन से इलाज संभव है और इसका सक्सेस रेट 80 से 90 फीसदी है। दुर्भाग्यवश किसी कारण से दोबारा चोट लग गई और यूरेथरा डैमेज हुई तो दूरबीन की मदद से परेशानी को दूर करने की कोशिश की जाती है जिसे मेडिकली ‘री-डू यूरेथ्रोप्लास्टी’ कहते हैं।
इन लक्षणों को पहचान लें
इंजरी होने के बाद पेशाब का अचानक बंद हो जाना, पेट फूलने लगना, पेशाब के रास्ते खून आना, पेट में तेज असहनीय दर्द के साथ बहुत अधिक बेचैनी और घबराहट होना।
इमरजेंसी में ऐसे देते राहत
स्ट्रिक्चर की समस्या के बाद जब रोगी अस्पताल पहुंचाता है तो राहत के लिए पेट में छोटा छेर कर ब्लैडर में पाइप लगाकर यूरिन पास कराया जाता है। सडक़ हादसे में घायल मरीज को बारह घंटे यूरिन पास नहीं हुआ तो इंडोस्कोप की मदद से कैथेटर डालकर यूरिन को पास कराते हैं जिससे किडनी को संक्रमण से बचाया जा सके। हादसे में स्पाइन या अन्य कोई गंभीर चोट लगी है तो कम से कम तीन महीने ये ऑपरेशन नहीं होता। रिकवरी के बाद ही ऑपरेशन संभव है क्योंकि ऑपरेशन के दौरान रोगी को एक करवट लेटना पड़ता है।
ऐसे पता करते रोगी की तकलीफ
स्ट्रिक्चर की तकलीफ को पता करने के लिए आमतौर पर रेट्रोग्रेड यूरेथरोस्कोपी जांच करते हैं। इसमें रोगी के पेशाब के रास्ते दवा डालकर एक्स-रे करते हैं जिससे भीतर की पूरी चीज साफ और स्पष्ट दिखती है। कई बार अल्ट्रासाउंड जांच से भी ब्लैडर और यूरेटर की स्थिति को देखा जाता है।
डॉ. ईश्वर राम ध्याल, यूरो सर्जन, डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ