फैलाव
शिशु में यह बैक्टीरिया दूषित वातावरण या आसपास किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। इनमें सबसे पहले फेफड़े या इसका कोई भी हिस्सा प्रभावित हो सकता है। इसके बाद बैक्टीरिया लसिका वाहिकाओं के जरिए गिल्टियों में प्रवेश करने के बाद अन्य अंगों पर असर छोड़ता है।
इनमें मुख्यत: फेफड़े, मस्तिष्क या इसकी झिल्ली, किडनी, प्लीहा, हड्डी और कोशिकाओं से जुड़े टीबी के मामले ज्यादा देखे जाते हैं।
लक्षण : भूख कम लगना, हल्का बुखार रहना, वजन घटना, सांस फूलना, छाती में दर्द के साथ बुखार, पेट फूलना या बिना दर्द के गांठ उभरना, जोड़ों में सूजन, दस्त, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, प्रभावित अंग से जुड़े
लक्षण दिखते हैं।
6-8 माह तक चलता इलाज
कब तक असर: बच्चे की उम्र जितनी कम होगी, उतनी ही रोग की आशंका ज्यादा होती है। इसका कारण कमजोर इम्यूनिटी है। शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बैक्टीरिया को ६-८ हफ्ते तक बढऩे व फैलने से रोकती है। लेकिन लक्षणों को नजरअंदाज करने, लापरवाही बरतने व कमजोर इम्यूनिटी के कारण समस्या गंभीर होने लगती है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार बच्चों का शुरुआती अवस्था में ही इलाज जरूरी है।
वर्ना रोग के बढऩे पर भविष्य में इससे कई अन्य रोगों की आशंका बनी रहती है। इलाज ६-८ माह के बीच पूर्ण रूप से हो जाता है। लेकिन अधिक कमजोरी या गंभीर स्थिति में सालभर तक दवाएं दी जाती हैं।
सावधानी: बच्चों को भीड़भाड़ वाले स्थानों पर ले जाने से बचें। दूषित खानपान व पेय पदार्थ से परहेज कराएं।