स्लो लर्नर नहीं
आमतौर पर माता-पिता स्लो लर्नर और डिसलेक्सिया प्रभावित बच्चे में अंतर नहीं कर पाते। स्लो लर्नर बच्चों में चीजों को समझने की क्षमता धीमी होती है जबकि डिसलेक्सिक बच्चे में कमजोर शब्द ज्ञान के अलावा प्रतिभा की कोई कमी नहीं होती। इन बच्चों की फोटोग्राफिक मेमोरी तेज होती है। ये बच्चे विषय का एक फे्रम एक बार दिमाग में बिठा लें तो भूलते नहीं।
पेरेन्ट्स के रूप में आपकी जिम्मेदारी
उम्र तथा भाषाई क्षमता को देखते हुए बच्चे से उन बातों पर चर्चा करें, जिन्हें आपने देखा और भांपा हो। उससे पूछें कि स्कूल में वह कैसा महसूस करता है, कहीं किसी बात को लेकर वह परेशान तो नहीं या फिर सुधार के लिए उसे किसी भी प्रकार की जरूरत तो नहीं है।
उसे बताएं कि हालांकि वह बहुत मेहनत करता है, लेकिन टीचर व आप उसके विकास के लिए कुछ और भी चीजों व उपायों को अपनाकर उसका साथ दे सकते हैं। अगर बच्चा पढ़ाई से जी चुराता है और टीचर ने कुछ पढ़ाया ही नहीं कहकर पल्ला झाड़ता है, तो उसके पास बैठने वाले बच्चे से संपर्क बनाएं। इससे आपको बच्चे की गतिविधियोंं के अलावा दिए गए होमवर्क, क्लास में पढ़ाए जा रहे चैप्टर आदि बातों के बारे में पता चलता रहेगा।
ऐसे बच्चे को पास बैठाकर शब्दों का उच्चारण करवाएं जिससे वह शब्दों को बेहतर तरीके से समझे और उसे शब्दों की जानकारी दें।माता-पिता बच्चे के साथ एक दोस्त की तरह व्यावहार करें ताकि वह हो रही किसी भी तरह की परेशानी को बेझिझक साझा कर सके। इससे बच्चे का डर भी दूर होगा।
बच्चे को शब्दों के विन्यास की जानकारी दें। उनके अर्थ समझाएं ताकि उनका कॉन्सेप्ट क्लीयर हो सके। बच्चे में छिपी क्षमताओं तथा प्रतिभा को उभारें। उसके प्रयासों की हमेशा तारीफ करें तथा गलती करने पर धैर्य से काम लें। गलती पर डांटने की बजाय उसे प्यार से समझाएं।