लक्षण – इनके मरीज किसी भी कार्य को करने का अपना तरीका बनाते हैं, इसमें कोई बदलाव इन्हें पसंद नहीं आता।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अलग व अकेला रहना पसंद करते हैं। इससे ग्रसित बच्चों की सीखने की क्षमता धीमी होती है। ये बोलने और नई भाषा सीखने में देरी करते हैं।
इससे पीड़ित कई मरीज बहुत प्रतिभावान भी होते हैं, वे किसी एक फील्ड जैसे म्यूजिक, एक्टिंग जैसा कोई एक काम बहुत अच्छी तरह से कर दिखाते हैं। ये बहुत कम चीजों को एंजॉय करते है जैसे उन्हें डांस करना पसंद है तो जरूरी नहीं कि म्यूजिक भी उन्हें अच्छा लगे। ये दूसरों की आंखों में देखकर बात करने से कतराते हैं।
कारण : रोग की मुख्य वजह फिलहाल अज्ञात है। एक्सपट्र्स का मानना है कि ये एक जेनेटिक बीमारी है। यानी परिवार में किसी को यह समस्या होगी तो उसके आगे की पीढ़ी में भी ये हो सकती है।
उपचार – इस बीमारी का पूरी तरह से निदान संभव नहीं है लेकिन कुछ थैरेपी और काउंसलिंग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। जैसे स्पेशल एजुकेशन, स्पीच थैरेपी, अभिभावकों की काउंसलिंग, सामाजिक मेल-मिलाप व व्यवहार में बदलाव और दवाएं। साइकोलॉजिस्ट, स्पीच थैरेपिस्ट और चिकित्सक एक टीम वर्क के रूप में इसका इलाज करते हैं। उपचार से बच्चे सामाजिक व्यवहार व संवाद में आने वाली समस्याओं को नियंत्रित करना सीखते हैं।